मैं कौन हूँ ?
उसने पूछा
मुझसे
तुम कौन हो ?
मैंने कहा
आप बहुत अच्छे हैं !
मगर मैं वो नहीं
जो आप हैं.
आप अपने
व्यक्तित्व से
स्वयं को घटा दें
बस्स ...
जो अधिशेष है
वह मैं हूँ.!
नारी
नारी
अर्धांगिनी है...
पुरुष का
एक श्रेष्ठतर भाग
अगर
काम न आए
तो
बहुत बुरा.
प्रस्तुत टिप्पणी अत्यंत व्यस्तता के चलते श्री जितेन्द्र जौहर जी से प्राप्त हुई है, जो मैं यहाँ पर जानकारी के लिए चस्पा कर रहा हूँ.धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह...‘प्रखर’ जी,
आपने तो ‘मैं कौन हूँ’ के माध्यम से दर्शन के द्वार पर दस्तक दे दी।
सबमें एक ही ‘आत्म-तत्त्व’ है।
सब एक ही पिता की संतान हैं। बस्स्स्स.....संसार ने अलग-अलग नाम दे दिए, हम सबको........इस तमाम सांसारिक एवं क्षणभंगुर पहचान को हटा देने पर ‘मैं’ और ‘तुम’ का तबील लौकिक फ़ासला ख़त्म हो जाता है...तब जो बचता है...वही असली स्वरूप है हमारा....हम सबका.........काश हम इस ‘एकात्मकता’
को जान पाते!
बंधु, मेरा कमेंट यहीं से स्वीकार कर लें, मेरी व्यस्ताताएँ कुछ दिनों तक
चलती रहेंगी...कुछ किताबें भी अधूरी पड़ी हैं, जिन्हें पूरा करना है।
ब्लॉगिंग के चलते पत्रिकाओं में मेरी उपस्थिति बहुत कम हो गयी थी। इधर बीच देश की दो प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कुछ स्तम्भ लिखने का प्रस्ताव स्वीकार लेने का मन बन रहा है। रिश्तों को ब्लॉग पर आने या न पाने से कदापि न जोड़ें...तथास्तु!
-जितेन्द्र ‘जौहर’