सुकून
मैंने देखा है
सुकूँ की तलाश में
भटकते हुए
लोगों को
न जाने कहाँ कहाँ
चंद हसरतों को
पूरा करके
समझ लेते हैं
कि उन्हें
मिल गया है
सुकून
शायद वो
सही नहीं हैं
बहुत कुछ
चाहते हैं लोग
अपनी जिंदगी से
लेकिन अंतहीन
ख्वाहिशों की
इस दौड़ में ही
खत्म हो जाती है
ये जिंदगी
फिर भी
नहीं मिलता
उनको सुकून
क्योंकि
सुकूँ तो
उसमें है जो
अपने पास है
और जो
अपना ही नहीं है
उसको
हासिल करके भी
कैसे मिल पायेगा
सुकून
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