My expression in words and photography

गुरुवार, 27 जून 2013

कितना अच्छा था !

कितना अच्छा था पापा पापा कहना
लेकिन बड़ा मुश्किल है पापा कहाना.

अपना था रोज का वही गोरख-धंधा
मगर अच्छा लगता था बाप का कंधा
बहुत मुश्किल था तब कोई डांट सहना.
कितना अच्छा था पापा पापा कहना
लेकिन बड़ा मुश्किल है पापा कहाना.

वो टी.वी. में कोई विज्ञापन का देखना
पापा से कहना “मेरे वास्ते भी ये लाना”
और ज़रा ज़रा सी बात पे फिर रूठना.
कितना अच्छा था पापा पापा कहना
लेकिन बड़ा मुश्किल है पापा कहाना.

अक्सर पापा से डांट खा कर रोना
फिर माँ की गोद में जाकर सोना
बस बे-फिकर, हर दम मस्ती करना.
कितना अच्छा था पापा पापा कहना
लेकिन बड़ा मुश्किल है पापा कहाना.

अब शुरू हो गया है पापा कहाना
ढूँढता रहता हूँ हर दम कोई बहाना
कल वो बहला दिया आज क्या कहना.
कितना अच्छा था पापा पापा कहना

लेकिन बड़ा मुश्किल है पापा कहाना.

परमसुख


वो जो एक नाम को सौ सुख कहता है
आँख का अंधा, खुद को नैनसुख कहता है.

बरस गुजर गए, उसके चेहरे पे हँसी देखे
लेकिन वो खुद को हंसमुख कहता है.

सब कुछ है मगर सकूं नहीं दिल को
देखो उसे वो खुद को मनसुख कहता है.

जिंदगी में न कभी चल पाया ठीक से
फिर भी खुद को तनसुख कहता है.

गर मिले सकूं तन और मन से ‘सहर’

तो हर कोई इसे परमसुख कहता है.

मंगलवार, 18 जून 2013

चिड़िया

जिन्दगी का है सुन्दर निशान चिड़िया
छोटी होकर भी सबसे महान चिड़िया.
माना कि देखने में बहुत छोटी है तू
मगर नहीं छोटी ये उड़ान चिड़िया.
भांप लेती हो खतरों को दूर से ही तुम
बहुत ऊंची है तेरी मचान चिड़िया!
हर दम कुछ सुनाती ही रहती हमें
चीं चीं करती ये तेरी ज़ुबान चिड़िया.
तेरी ताकत का कोई जवाब ही नहीं
क्या टिकेगा तेरे आगे विमान चिड़िया.
बच्चे भी देखकर खुश हो जाते तुम्हे
ऐसी सुन्दर है तेरी पहचान चिड़िया.
नहीं दुश्मन कोई दुनिया में सहर
दोस्ती है फकत तेरा ईमान चिड़िया.