My expression in words and photography

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

हमारा शहर

हमारा शहर तभी अच्छा लगेगा जब इस शहर के निवासी इसे मन से प्रेम करते हों. यह स्वाभाविक ही है कि जिसे हम प्रेम करते हैं वह गंदा कैसे हो सकता है? किसी भी शहर के सार्वजनिक स्थानों को देख कर वहां रहने वाले लोगों के स्वभाव का अनुमान लगाया जा सकता है. सार्वजनिक स्थानों के अंतर्गत वहां की सड़कें, चौंक-चौराहे, गलियाँ, बारात-घर, धर्मशालाएं, स्कूल तथा कालिज आदि आते हैं. यदि शहर का प्रवेश द्वार ही तंग होगा तो बाहर से आने वाले लोगों को और भी अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. द्वार पर रुकावट अथवा गंदगी होने से बाहरी लोगों का शहर के प्रति मोह भंग हो सकता है. अतः शहर के सभी प्रवेश मार्ग साफ़-सुथरे एवं खुले होने चाहिएं ताकि लोगों को पहली नज़र में ही शहर से प्यार हो जाए. शहर की गलियाँ साफ़-सुथरी रहनी आवश्यक हैं. कई स्थानों पर लोग अपने घर की गंदगी बाहर डाल देते हैं जो उचित नहीं है. केवल अपना घर और दुकान साफ़ रखने की मनोवृत्ति के कारण हम अपनी सड़कों और गलियों के स्वरुप को बिगाड़ते जा रहे हैं. जाहिर है मैं अपने शहर के सभी सार्वजनिक स्थलों को खुला, हवादार तथा साफ़-सुथरा देखना चाहूंगा क्योंकि हमारे नागरिक इन्हीं स्थानों का सर्वाधिक उपयोग करते हैं. जिस स्थान पर लोग अधिक समय तक रहते हों वहां गंदगी फैलने की संभावना भी अधिक होती है. अतः इन सब स्थानों पर हर रोज़ कम से कम दो बार झाडू लगनी चाहिए ताकि कूड़ा-करकट दिखाई ही न दे. इसके अतिरिक्त सभी मुख्य स्थानों पर कूड़ेदान रखवा देने चाहिएं ताकि लोग इन्हीं में कूड़ा डालें. मनुष्य की सहज मनोवृत्ति है कि किसी स्थान पर गंदगी देखते ही वह वहां गंदगी फैलाने को प्रेरित हो जाता है. जहां पहले से कूड़ा-कचरा पड़ा हो वहां अन्य लोग भी कूड़ा डालने लगते हैं जो सही नहीं है. ऐसे स्थानों को चिन्हित करके वहां कैमरे लगाए जाने चाहिएं ताकि सार्वजनिक चेतावनी द्वारा ऐसे लोगों को न केवल जुर्माना लगा कर बल्कि सामाजिक चेतना जागृत करके सही पटड़ी पर लाया जा सके. कुछ लोग इन स्थानों के आस-पास कूड़ा एकत्र करके आग लगा देते हैं जिससे न केवल प्रदूषण होता है बल्कि जले हुए अवशेषों की गंदगी भी चारों और फैलती है. धूम्रपान करने वाले लोग बीड़ी-सिगरेट एक दम से तो छोड़ नहीं सकते किन्तु उनके लिए एक अलग स्थान की व्यवस्था अवश्य ही की जानी चाहिए ताकि ये लोग सार्वजनिक स्थानों पर धुंआ प्रदूषण न कर सकें. कुछ लोग इन स्थानों पर खड़े-खड़े या चलते हुए चिप्स, टॉफ़ी, चोकलेट, आइसक्रीम अथवा कोल्ड ड्रिंक्स लेने के शौक़ीन हैं, उन्हें सभी पैकिंग रैप्पर इकट्ठे करके कूड़े-दान में ही डालने चाहिएं. यहाँ-वहां गंदगी फैलाने वालों को पहले सावधान करने चाहिए तथा न मानने पर जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए. अनुशासन के बिना मनुष्य का जीवन पशु के समान होता है. गंदगी फ़ैलाने एवं इसमें रहने की मनोवृत्ति पशुओं में होती है. मानव जीवन गंदगी में पनपने के लिए नहीं है. जो लोग सार्वजनिक स्थानों पर मिलते हैं, वे एक दूसरे से मिल कर खुश होते हैं तथा सामाजिक सौहार्द्र बढ़ता है. यदि ऐसे स्थानों पर गंदगी होगी तो कोई वहां एक पल भी नहीं ठहर पाएगा. सामाजिक मेल-जोल भी साफ़-सफाई पर ही अधिक निर्भर करता है. लोग पार्कों एवं उद्यानों में भी इसी लिए जाते हैं कि वहां उन्हें ठंडी व ताज़ी हवा मिल सके. शहर की भीड़-भाड़ वाली संकरी गलियों से हर कोई ऊब जाता है. सार्वजनिक स्थान हम सबके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि यहाँ हमें अन्य लोगों के साथ मिलने, बैठने और खुशियाँ बांटने का अवसर मिलता है. ये स्थान सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की तर्ज़ पर बनाए जाते हैं ताकि किसी भी व्यक्ति को कोई असुविधा न हो. अक्सर देखा जाता है कि हमार बाजारों में दूर दूर तक जन-सुविधा हेतु टॉयलेट या शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं होती. ऐसे में लोग बीच सड़क पर या खुली नालियों में ही अपने बच्चों को शौच करवा देते हैं. यह हमारी नगर-पालिका का कर्तव्य है कि वह सभी प्रमुख स्थानों पर जन-सुविधाओं पर समुचित ध्यान दे. शहर भर में साफ़-सफाई एक या दो लोगों का काम नहीं अपितु इसमें जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी. अधिकतर लोग अज्ञानतावश ही गंदगी फैलाते रहते हैं. इन्हें जीवन भर किसी ने बताया ही नहीं होता कि सफाई इनके जीवन हेतु कितनी महत्त्वपूर्ण है? हमारे देश में फैलने वाले अधिकतर रोग केवल गंदगी से होते हैं और ये गंदगी सार्वजानिक स्थानों पर ही अधिक होती है. हमें सफाई का सन्देश अपने बच्चों से ही आरम्भ करना होगा. जब तक हम अपने बच्चों को सफाई के महत्त्व के बारे में नहीं बताएंगे, वे आजीवन गंदगी फैलाते रहेंगे. अतः हमें अपने सभी स्कूलों में बच्चों को साफ़-सुथरे रहने के ढंग सिखाने चाहिएं. बच्चों में बड़ों की तरह कोई अहम् भावना नहीं होती जिससे ये हमारे माहौल को अधिक तेज़ी से समझ सकते हैं. इन्हें बचपन में ही सिखाना चाहिए कि यहाँ-वहा थूकने की मनोवृत्ति कितनी बुरी है? परन्तु जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो इन्हें आप थूकने या गंदगी फ़ैलाने से रोक नहीं पाएंगे. साफ़-सफाई हमारी आदतों में होनी चाहिए. जिन लोगों को जीवन भर गंदगी में रहने की आदत हो जाए उनका सुधारना बहुत कठिन होता है. यदि हमने भविष्य में अपने सार्वजनिक स्थलों को साफ़-सुथरा रखना है तो अपनी आने वाली पीढ़ी को इस दिशा में सचेत करना होगा. आजकल आवारा पशु एवं कुत्तों के कारण भी सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ एवं गंदगी बढ़ती जा रही है. सभी पशुओं को समीप की गौ-शाला में भेजा जा सकता है ताकि लोग साफ़-सुथरे स्थानों पर आसानी से रह सकें. यदि देखा जाए तो गंदगी फैलने का सबसे बड़ा कारण मनुष्य स्वयं ही है. वह अपने स्वार्थ के लिए तरह तरह के प्रपंच करता रहता है जिससे न केवल वातावरण दूषित होता है बल्कि अन्य लोगों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है. लोग तथाकथित पुण्य कमाने की होड़ में आवारा कुत्तों को न केवल खिलाते-पिलाते हैं अपितु सार्वजानिक स्थलों पर विचरण करने हेतु भी प्रेरित करते हैं. इस प्रकार इन कुत्तों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जो एक खतरनाक संकेत है. हमारे सार्वजनिक स्थान कुत्ते पालने के स्थान नहीं हैं. यदि किसी को इन कुत्तों से इतना ही लगाव है तो इन्हें अपने घर ले जा कर पालना चाहिए, न कि सार्वजनिक स्थान पर! अंत में सर्वाधिक जिम्मेवारी हमारी न्यायपालिका की बनती है जो देश के कानून के मुताबिक़ लोगों को सफाई के रास्ते पर चलने में अपना योगदान दे सके.