My expression in words and photography

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

आओ मनाएं इस बार दिवाली

दिवाली
आओ सजाएं इस बार दिवाली
दिए मोमबत्तियों से नहीं
बल्कि साक्षरता के प्रसार से
और भी होगी प्रकाशमान दिवाली!

आओ खेलें इस बार दिवाली
आतिशबाजी या पटाखों से नहीं
बल्कि बालश्रम मुक्ति से
और भी सुखमय होगी दिवाली!

आओ पूजें इस बार दिवाली
प्रदूषण एवं शोर से नहीं
बल्कि शांत वातावरण में
देवों के आने से रोशन होगी दिवाली!

आओ संवारें इस बार दिवाली
दिखावे की सजावट से नहीं
बल्कि सादगी व पवित्रता से
और भी शालीन होगी दिवाली!

आओ मनाएं इस बार दिवाली
मिठाइयों व पकवानों से नहीं
बल्कि मित्रों में मुस्कान बाँट कर
और भी रंगबिरंगी होगी दिवाली!

आओ दिखाएँ इस बार दिवाली
शराब या जुआ खेल कर नहीं
बल्कि सभी बुरे काम छोड़ कर
और भी सुरमय हो जायेगी दिवाली!

आओ देखें इस बार दिवाली
केवल अपनी ही आँखों से नहीं
बल्कि नेत्रदान संकल्प करके
जीवनोपरांत भी जगमग होगी दिवाली!

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

वतन की याद

मेरा वतन
मुझे आज मेरा
वतन याद आया
भूला ही कहाँ था
जो फिर याद आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

दोस्तों से मुलाकातें
वो मोहब्बत की बातें
ठंडी ठंडी बयार में
गुजरती थी रातें
था सब कुछ तो अपना
नहीं कुछ पराया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

वो माँ की दुलारें
अपनों की मनुहारें
कभी नर्म धूप और
फिर ठंडी बौछारें
हर शाख पर थी रौनक
हर गुंचा मुस्कुराया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

कोयल के सुरों में वो
सावन के हसीं झूले
कितना ही भुलाया
मगर फिर भी नहीं भूले
जैसे ही घटा बरसी
बरबस वो याद आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

पल पल में शोख मस्ती
हर लम्हा हसीन
रहते थे मिल के ऐसे
जिंदगी थी पुर-सुकून
न जाने किस घडी मैं
अपना घर छोड़ आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

वो दिलकश अदाएं
देखते ही मुस्कुराना
जाते हो तो सुनो जी
घर जल्दी लौट आना
उठते ही रोज सुबह
उसका ख्याल आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

भूला ही नहीं मुझ को
अब तक भी वो मंजर
वो जुदाई के लम्हे
थे जैसे कोई खंज़र
न चाहते हुए भी मैं
वहाँ सबको छोड़ आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

वो अहिंसा की धरती
है जो अमन की निशानी
कही जो बात सबने
हमने भी वही मानी
मुझे नाज़ इस पर
मैं हूँ भारत का जाया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

एक अभिव्यक्ति छोटी सी

दिलों को जीतो
समझ नहीं आता
कि क्यूं बोलते हैं
सारे जहां के लोग
एक ही भाषा में
क्या इसलिए कि
झूठ और कपट की जुबाँ
सब जगह एक समान है.

क्यूं डरता है मानव
मानव से
क्या इसलिए कि मानव
मानव नहीं
दानव बन गया है.

क्यूं भूखे मरते हैं लोग आज भी
इसलिए कि कुछ लोगों की भूख
बहुत अधिक बढ़ गई है.

क्यूं झगड़ते हैं मेरे देश के लोग
इसलिए कि सब अपने अपने
स्वार्थ में अंधे हो गए हैं.

क्यूं लड़ते हैं दो देश आपस में
क्या इसलिए कि वो चाहते हैं
सारे जहां में उनका राज हो.

आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला
खून बहेगा कब तक मानवता का
जब कोई नहीं बचेगा इस युद्ध में
तो कौन जीतेगा किसको
और राज करेगा कौन
किस पर ?

जीतना ही है तो दिलों को जीतो
राज करो केवल दिलों पर
दुनिया पर नहीं
दुनिया पर राज करने की चाहत में
न जाने कितने लोग
उठ गए हैं इस दुनिया से.

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

मैं कोई कवि नहीं

प्रस्तुत कविता के सन्दर्भ में आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि यहाँ “कवि” शब्द का प्रयोग स्वयं के लिए नहीं अपितु उन परिस्थितियों के लिए किया है जिनमें कविता लेखन सुगमता से हो सकता है. जहां तक मेरा प्रश्न है मैं वास्तव में कोई कवि नहीं हूँ ...हाँ थोड़ी बहुत अपने विचारों की अभिव्यक्ति इस ब्लॉग के माध्यम से करता रहता हूँ. आशा करता हूँ कि मुझे आप सब प्रबुद्ध जनों एवं कवियों का आशीर्वाद एवं स्नेह प्राप्त होता रहेगा.

मैं कोई कवि नहीं
न ही पहुँच सकता हूँ
वहाँ जहां न पहुंचे रवि
मैं कोई कवि नहीं.

जीवन में जब कष्ट न हों
मुख से निकली कोई आह न हो
अंतर्मन में कोई घाव नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

प्रकृति में कोई निखार न हो
बागों में छाई बहार न हो
पेड़ों पर पंछी गाएं नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

आकाश में बादल छाये न हों
मधुवन में नाचे मोर न हों
बिन बादल के बरसात नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

स्वतंत्रता का संघर्ष न हो
जुल्मों का सहना सहर्ष न हो
फिर भी मन में कोई पीड़ा नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

समाज में छोटा बड़ा न हो
छोटी बातों पर अडा न हो
आपस में कोई भेद नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

कवि बहुत हैं दुनिया में
रहते हैं बड़ी बड़ी सुविधा में
धन दौलत से भी तृप्ति नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

असली कवि जहां मिलता है
वहाँ रवि भी दुर्लभ रहता है
ढूँढ पाना फिर भी कठिन नहीं
मैं कोई कवि नहीं.

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

बात छोटी सी है-

हमारा पर्यावरण

आजकल हम सब अपने पर्यावरण की तो बहुत फिक्र करते हैं परन्तु इसे साफ़ सुथरा बनाने के लिए कुछ भी नहीं करते. यदि हम कुछ छोटी छोटी बातों पर ध्यान दें तो न केवल पर्यावरण को शुद्ध रख सकेंगे अपितु अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अच्छे वातावरण का सृजन कर पाएंगे.
अपने घर और दफ्तर में अनावश्यक पानी की बर्बादी न होने दें. यदि आवश्यकता न हो तो पानी की टूंटी बंद कर दें. जहां तक संभव हो पानी की बचत करें. सब्जियों व फलों को धोने के बाद पानी को फेंकने की बजाये उसे पौधों की सिंचाई में उपयोग करें. अपने फ्रिज के दरवाजे को आवश्यकता से अधिक देर तक खुला न रखें. ऐसा करने से बिजली की काफी बचत होती है. इसी प्रकार घर के सभी विद्युत उपकरण केवल आवश्यक होने पर ही चलायें.
पानी गर्म करने के लिए सोलर हीटरों का प्रयोग करें. इसी प्रकार सोलर कुकर द्वारा बनाया गया भोजन पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होने के साथ साथ उर्जा की खपत कम करता है. बार बार चार्ज होने वाली बैटरियों का उपयोग करें और कागज, कांच, प्लास्टिक तथा अन्य व्यर्थ पदार्थों को पुनः चक्रण द्वारा उपयोग में लायें. वर्षा के पानी का संग्रहण करें ताकि इसे आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में लाया जा सके. जब आप बाज़ार में जाएँ तो प्लास्टिक से बने थैलों का उपयोग न करें. सूत या जूट से बने थैले बाज़ार में लेकर जाएँ. यथा संभव पुनः चक्रित होने वाले ऐसे पदार्थों का चयन करें जो स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न डालें. केवल ऐसे घरेलू उपकरण ही खरीदें जो उर्जा की खपत में बचत कर सकें.
रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करने की बजाय प्राकृतिक उत्पादों को ही उपयोग में लायें. ऐसे पौधे उगायें जो कीटों को दूर भगाते हैं. नीम व लहसुन के तेल को मिला कर रोग-ग्रस्त पेड़ों, पोधों एवं झाडियों पर छिडकें. इससे जीवाणु व फफूंद नष्ट हो जाते हैं. मिटटी उपजाऊ बनाने के लिए कम्पोस्ट खाद को उपयोग में लाया जा सकता है. घर से निकलने वाले कचरे जैसे सब्जियों-फलों के छिलके और वाटिका में गिरे पेड़ों के सड़े-गले पत्तों से कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है. रासायनिक खाद प्रयोग करने से ग्रीन हाऊस गैसों जैसे नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. ग्रीन हाऊस गैसों से वायु प्रदूषण होता है तथा वैश्विक ताप वृद्धि का खतरा बढ़ता है. अधिक से अधिक पेड़ लगाएं ताकि पर्यावरण स्वच्छ रहे. बागवानी के काम में अनावश्यक विद्युत उपकरण उपयोग न करें. प्राकृतिक अभ्यारण्यों एवं पार्कों में सैर-सपाटे के लिए जाएँ ताकि प्रकृति व पर्यावरण के प्रति प्रेम और सौहार्द बना रहे. पार्कों में वन्य जीवों के साथ छेड़छाड़ न करें. इन्हें दूर से ही निहारें तथा इनके निकट स्वचालित वाहन आदि लेकर न जाएँ.
जहां तक संभव हो सार्वजनिक परिवहन सुविधा प्रयोग करें ताकि वाहनों से निकलने वाले धुएँ को कम किया जा सके. ऐसे वाहन उपयोग में लायें जो कम से कम मात्रा में ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन करें. निरीह पशुओं की खाल व अंगों से बने किसी उत्पाद को उपयोग न लायें. केवल ऐसे होटलों में ठहरें जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो तथा ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों पर अधिक निर्भर हों.

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

कविताएँ

ईद
रोज होती है यहाँ
शब से सहर
मगर तुम कहीं
नहीं आते नज़र.

जिस दिन भी
तुम्हारी दीद होगी
अपनी तो उसी दिन
ईद होगी.

चांद देखकर
होगी पूरी मुराद
मेरी ओर से
ईद की मुबारकबाद !

खुदा करे आपकी
हर रोज ईद हो
मुमकिन है मुझे भी
अब तुम्हारी दीद हो !

एक चांद मेरे सामने
और एक आसमां में होगा
कारवाँ खुशियों का फिर
हमारे दरमियां होगा.