My expression in words and photography

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

“रौशनी महकती है”

जनाब सत्य प्रकाश शर्मा का “रौशनी महकती है” गज़ल संकलन, जो हाल ही में छपा है, कई मायनों में नायाब है. ये सबसे मुख्तलिफ नज़र आता है. खासतौर पर छोटी बह्र की ग़ज़लों को बड़ी खूबसूरती से लिखा गया है. गज़लों में रवानी देखते ही बनती है. हर तरह के मज़मून पर आपने अपनी बात कही है. यकीनन ये किताब आपकी शख्सियत की भरपूर नुमायन्दगी करने में कामयाब हुई है, ऐसा मेरा विश्वास है. मुकम्मल किताब निहायत ही दिलचस्प और सहेजने के काबिल है.
वर्तमान अव्यवस्था पर आपने कुछ ऐसे कटाक्ष किया है-
वो जो महफूज़ खुद ही नहीं
वो हमारा निगहबान है.

क्या खूबसूरत शायरी है !

ये सोच के नज़रें वो मिलाता ही नहीं है
आँखें कहीं जज़्बात का इज़हार न कर दें.

कहीं खूबसूरत शिकायत है...

जिसको चाहें उसी से दूर रहें
ये सितम भी अजीब कितने हैं.

बे-मिसाल तस्सवुर है आपका !

रोज लड़ता है आइना मुझसे
क्या बताऊँ ये घर की बातें हैं.

दुनिया की हकीकत है इसमें !

कुछ दिखाने के, कुछ छुपाने के
मुख्तलिफ रंग हैं ज़माने के.

दिलचस्प रवानी है ...

चोट खाते रहे ज़माने से
बाज़ आए न मुस्कुराने से.

कहीं मजाहिया अंदाज़ है आपका !

गाल अपने बजाओ महफ़िल में
क्या करोगे मियाँ मंजीरों का.

तो कहीं ज़मीनी हकीकत बयान की है.

कौडियों की जिन्हें तमीज नहीं
भाव तय कर रहे हैं हीरों का.

ज़हन औ’ दिल की कशमकश है ..

लाख कहता हूँ कि धोखे खाएगा
दिल ये कहता है कि देखा जाएगा.

कमाल का फलसफा है !

बात करने लगा वफाओं की
यानि वो फिर मुझे दगा देगा.

शायरी जो मौजूदा दौर से ताल्लुक रखती है-

तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है
खैरात जो देता है वही लूटता भी है.

निहायत साफगोई है जनाब इसमें !

अगर झूठ बोलूँ तो खुशियों से खेलूँ
मगर क्या करूँ मेरी आदत नहीं है.

गज़ब की नसीहत है इसमें !

पास जा कर पढ़ो ज़माने को
तुमने पढ़ कर किताब देखा है.

सबकी तारीफ़ है इसमें-

ऐब मुझमें भी कम नहीं होंगे
मैं भी इंसान ही तो हूँ आखिर.

वजा फरमाया है आपने !

सब पे होती नहीं अता उसकी
वरना हर कोई शायरी कर ले.