My expression in words and photography

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

खून सफ़ेद हो गया है

रिश्ते
कहते हैं
रिश्तों में
दरार आ रही है
आजकल
रिश्ते टूट रहे हैं
भाई को भाई से
बहिन को भाई से
बच्चों को माँ बाप से
प्यार नहीं रहा
कहते हैं
खून सफ़ेद हो गया है
सबका
क्या वास्तव में ऐसा है
बिल्कुल नहीं
खून का रंग तो
लाल ही है
चाहे जब देख लो
तो क्या खून की
गरमी कम हुई है
ऐसा भी नहीं
तो फिर
क्या माजरा है ये सब
शायद दिल में
कुछ खोट है
हमारी सोच में
कोई पाप है
जो हर शय
खोटी लगती है
गंगा जल में
नहाने से तो
धुलता है
केवल तन
फिर भला कैसे
निर्मल होगा मन
जब तक मन का
पाप नहीं धुलेगा
तब तक नहीं होगा
ये मन उजला
और लगेगा कि
खून सफ़ेद है
क्योंकि
सोच पर चढ़ा है
स्वार्थ का चश्मा
जो दिखाता है
सब कुछ सफ़ेद
लाल खून भी
सफ़ेद...

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