My expression in words and photography

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

ईर्ष्या


नदी मिली जब सागर में
तो अपनी उपलब्धि पर
खूब लगी वह इतराने
पाकर विशाल आकार
वह लगी खुशी मनाने
तब सागर ने ये बात कही
“कहीं नेकट्य का यह मेरे
कोई दुरुपयोग तो नहीं?”

गुरु से पाकर ज्ञान शिष्य
मन ही मन था सोचता
बांटूगा मैं ज्ञान एक दिन
यूं सबको बिन मोल का
लेकिन गुरु ने सोच कर
अपने शिष्य से यूं कही
“कहीं नेकट्य का यह मेरे
कोई दुरुपयोग तो नहीं?”

सुन के साधु के प्रवचन
मन हो गया जब शांत
दान महिमा जागृत हुई
पाकर सत्संग का साथ
साधु को यह देख कर
तब कुछ ईर्ष्या होने लगी
“कहीं नेकट्य का यह मेरे
कोई दुरुपयोग तो नहीं?”