My expression in words and photography

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

सुकून

मैंने देखा है
सुकूं की तलाश में
भटकते हुए
लोगों को
न जाने कहाँ कहाँ
अपनी हसरतों को
पूरा करके
समझ लेते हैं
कि उन्हें
मिल गया है
सुकून
वो शायद
सही नहीं हैं
बहुत कुछ
चाहते हैं लोग
अपनी जिंदगी से
लेकिन अंतहीन
चाहतों की
इस दौड़ में ही
खत्म हो जाती है
ये जिंदगी
फिर भी
नहीं मिलता
उनको सुकून
क्योंकि
सुकूं तो
उसमें है जो
अपने पास है
और जो
अपना ही नहीं है
उसे हासिल करके भी
भला कैसे
मिल पायेगा
सुकून?
























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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

एक और मंच

अपनी बात कहने का
दूसरों की बात सुनने का.
अपनी बोली के माध्यम से
एक दूसरे को जानने समझने
के बाद अपनी अभिव्यक्ति हेतु
पेश है आप के लिए एक और मंच...

यदि हम पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करते हैं तो सदैव एक बात याद रखनी चाहिए कि सूरज ने जब भी पश्चिम की ओर रुख किया वह डूब गया.

असहिष्णुता
किसी को अपनी बात न कहने देना अथवा दूसरों की अभिव्यक्ति को असंवैधानिक ढंग से लगाम देना आज बढ़ती हुई असहिष्णुता का ही प्रतीक है. लोग दूसरों की बोलती बंद करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं, जो किसी भी प्रकार से उचित नही है. जीवन कोई एक या दो पल का नही होता अपितु वर्षों की लंबी अवधि से बनता है. फिर हम किसी एक पल में यह कैसे स्वीकार कर लेते हैं कि अब सब कुछ खत्म हो गया है? जबकि यह शाश्वत सत्य है कि जीवन में सबसे अच्छा समय अभी आने वाला है. अगर कुछ बुरा हो रहा है तो यह भी सत्य है कि उससे भी बुरा वक्त आ सकता है. ऎसी परिस्थितियों में हमें विवेक एवं संयम से काम लेने की आवश्यकता पड़ती है. मनुष्य जीवन की अपनी मर्यादाएं हैं जिनका सम्मान किया जाना अति आवश्यक है.

सफल जीवन जीने के लिए अपना व्यवहार सर्वोपरि होता है. अगर आपका बर्ताव अच्छा है तो लोग सर-आँखों पर बिठाते हैं. अक्सर कहा भी जाता है कि ‘बा अदब बा-नसीब, बे-अदब बे-नसीब’ अर्थात जो लोग दूसरों की इज्ज़त नहीं करते, भाग्य भी उनका साथ नहीं देता. जो गाली हमें स्वयं के लिए अच्छी नहीं लगती वह हम दूसरों को कैसे देने की सोच लेते है...यह समझ से परे है. ये सभी बातें परिवार, समाज, प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर भी समान रूप से विचारणीय हैं. अभी हाल ही में अखबारों से पता चला कि अमुक स्थान पर किसी ने एक संभावित वक्ता की ओर जूता उछाल दिया ताकि वह अपनी बात दूसरों के सामने न रख सके. यह अत्यंत हास्यास्पद लगता है. जूता उछाल कर तो उस वक्ता की बात को और भी ज्यादा प्रचार माध्यमों का लाभ मिल गया कि ऎसी कौन सी बात है जो वह कहना चाह रहा था. जबकि जूता उछालने वाले व्यक्ति को सब ने भला-बुरा ही कहा. अपना विरोध प्रकट करने के अनेक लोकतांत्रिक ढंग हो सकते हैं. जब आपको किसी की बात स्वीकार्य न हो तो आप चुपचाप वह स्थान छोड़ कर भी जा सकते हैं. ऐसा करने से वक्ता को स्वतः मालूम हो जाएगा कि श्रोता उसकी बात से सहमति नहीं रखते. यह सभी जानते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. अगर कोई इस मुद्दे के विरोध में कुछ बोलता है तो इससे क्या फर्क पड़ता है? क्या एक व्यक्ति के बोलने या न बोलने पर ही कश्मीर का भविष्य टिका है? हरगिज़ नहीं. फिर इस पर बे-वजह बवाल क्यों? हमारी संस्कृति एवं अनमोल विरासत हमें सदा शान्ति व सहिष्णुता का सन्देश देती आई है. हमारे देश के महान संतों-विचारकों का भी यही मत रहा है कि आपसी प्रेम और भाईचारे का कोई विकल्प नही है. कहा जाता है “मोहब्बत का सफर, कदम दर कदम और नफरत का सफर एक या दो कदम” क्योंकि नफरत के साथ चंद कदम चल कर आप भी थक जाएँगे और हम भी. मोहब्बत का सफर बहुत लंबा और सुहावना होता है जिसमें थकावट की तो कोई गुंजायश ही नही है. पठानकोट के एक अज़ीम शायर जनाब राजेंद्र नाथ ‘रहबर’ ने अपने अश'आर में कुछ यूं कहा है-

मोहब्बत चार दिन की है अदावत चार दिन की है
ज़माने की हकीकत दर हकीकत चार दिन की है
बनाए हैं मकां अहबाब ने लाखों की लागत से
मगर उनमें ठहरने की इजाज़त चार दिन की है.


हमारे देश में अनेकों ज्वलंत समस्याएँ मुंह बाए खडी हैं जिनका समाधान होना ज़रूरी है. हम छोटी छोटी बातों पर अपना विरोध दर्ज करने से बिलकुल भी नहीं झिझकते किन्तु जहां विरोध अपरिहार्य हो वहाँ खामोश बैठे रहते हैं. आज भ्रष्टाचार से हर कोई त्रस्त है. हम सब चाहते हैं कि यथा शीघ्र इस दानव से मुक्ति मिले. परन्तु यह भी कटु सत्य है कि हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग अपने अल्प-कालिक हित साधने के लिए इस दानव की धन-धान्य से सेवा करता रहता है. महात्मा गांधी ने कहा था कि “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं”. अतः आज केवल एक या दो भ्रष्टाचारी व्यक्तियों को मार देने से काम नहीं चलेगा अपितु भ्रष्टाचार का ही समूल नाश करने की आवश्यकता है. इन सभी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष से अच्छा कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता. एक सभ्य समाज में शांति एवं सहिष्णुता ही ऐसे हथियार हैं जिन्हें इस धरती पर वर्षों से सफलतापूर्वक आजमाया गया है तथा ये हर बार विजयी होकर सामने आए हैं.

सोमवार, 26 सितंबर 2011

सब का सपना

सब का सपना

यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है
जब होगा सब के पास
रोटी कपडा और मकान
जियो और जीने दो पर
नहीं उठेगा कोई सवाल
जैसा अधिकार होगा
वैसा ही कर्तव्य अपना है.
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है.

जब ना लड़ेगा कोई
धर्म या जाति के नाम पर
होगा आदर मानवता का
समानता के आधार पर
वसुधैव कुटुम्बकम की
प्रथा को साकार करना है.
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है.

नहीं बंटेगी जब धरती
अलग देशों के नाम से
बनेंगे नागरिक सारे
धरा के अपने आप से
समूची दुनिया को एक
शांतिप्रिय स्थल बनना है.
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है.
























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शनिवार, 27 अगस्त 2011

अन्ना

अन्ना
बहुत कठिन है अन्ना बनना
देश की खातिर भूखे रहना.

स्वजन को सम्मान दिलाने
भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने
सबसे मिलकर आगे बढ़ना
बहुत कठिन है अन्ना बनना
देश की खातिर भूखे रहना.

बापू ने देश आज़ाद कराया
लोगों को स्वराज दिलाया
फिर भी अधूरा उनका सपना
बहुत कठिन है अन्ना बनना
देश की खातिर भूखे रहना.

अहिंसा के पथ पर आगे बढ़ना
स्वच्छ प्रशासन सबका सपना
‘जन-लोकपाल’ को पारित करना
बहुत कठिन है अन्ना बनना
देश की खातिर भूखे रहना.

आओ हम सब आगे आयें
सोये हुओं को आज जगाएं
नहीं स्वीकार यूं तेरा मरना
बहुत कठिन है अन्ना बनना
देश की खातिर भूखे रहना.

मंगलवार, 15 मार्च 2011

मोबाइल

मोबाइल की अहमियत
शायद ही कोई ऐसा स्थान होगा जहाँ आपको इनकी उपस्थिति का एहसास ऍम पी थ्री रिंगटोन, किसी गीत के मुखड़े या फिर केवल झनझनाहट के माध्यम से न हो जाता हो. मोबाइल की घंटी ऐसी है कि जो बजने के लिए स्थान या अवसर का चयन नहीं करती. उसे तो बस बजना है...कहीं भी और किसी भी अवसर पर. अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है कि मुझे किसी की मृत्यु के अवसर पर संवेदना प्रकट करने के लिए जाना पड़ा. इस अवसर पर बहुत से लोग एकत्रित थे. अचानक ही किसी की जेब से पॉप संगीत की स्वर लहरी गूंजने लगी और ग़मगीन माहौल में मानो अजीब सी स्तब्धता छा गई. आनन-फानन में जैसे ही मोबाइल शान्त हुआ तो स्थिति में सुधार आया. मेरे मित्र इस यन्त्र के बड़े शौकीन हैं. वे हर समय इसे किसी न किसी बहाने बस मचकाते ही रहते हैं. कभी एस ऍम एस पढ़ने के बहाने तो कभी इन्हें मित्रों को भेजने के लिए....बस हर दम लगे ही रहते हैं जनाब इस निरन्तर क्रिया में ! जब यह काम नहीं होता तो वो संगीत का आनंद लेने लगते हैं.

आजकल का मोबाइल केवल चल दूरभाष यन्त्र ही तो नहीं रह गया है. आप इससे कई अन्य विविध कार्य जैसे टीवी देखना, ई-मेल भेजना, अन्तर्जाल से चेटिंग और वेब सर्फिंग व डाटा डाउन लोड करने जैसे कार्य भी सुगमता से कर सकते हैं. मोबाइल में आप अपने लेख एवं अन्य दस्तावेज़ भी सुरक्षित रख सकते हैं. यह अपने आप में एक केमरा भी है जिससे लिए गए चित्रों को आप अपनी यादगार के लिए रखने के साथ साथ अपने मित्रों को प्रेषित भी कर सकते हैं. मोबाइल में आजकल सोशल नेटवर्किंग द्वारा बहुत कम खर्च में किसी भी समय मित्रों एवं सम्बन्धियों से संपर्क साधा जा सकता है. आजकल मोबाइल ग्लोबल पोजीशानिंग प्रणाली से जुड़े होने के कारण आपकी वर्तमान स्थिति का सटीक आकलन कर सकते हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मोबाइल के आने से आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मानों क्रान्ति सी आ गई है.

मोबाइल विभिन्न आकार एवं प्रकार के हो सकते हैं. कुछ लोगों के लिए मोबाइल आवश्यकता है तो अन्य सब के लिए यह मात्र स्टेटस सिम्बल बन कर रह गया है. अतः इनकी कीमत की भी कोई सीमा नहीं होती. बर्तन साफ करने वाली बाई, ढूध व सब्जियाँ बेचने वाले व्यापारी, गलियों में फेरी लगा कर सामान बेचने वाले, हर तरह के डीलर, दफ्तरों में काम करने वाले लोग, मिल मालिक, नौकर, पुलिस, नेता, लेखक, मंदिर के पुजारी.....कोई भी तो ऐसा नहीं है जो इसका उपयोग न करता हो.

मोबाइल के आने से लोगों ने घड़ी का इस्तेमाल लगभग बंद ही कर दिया है क्योंकि इसमें समय देखने के साथ साथ अलार्म एवं स्टॉप वाच के विकल्प मौजूद होते हैं. मोबाइल के कारण लोगों ने आजकल पत्र लिखना लगभग बंद ही कर दिया है. अपने सन्देश या तो वे एस ऍम एस द्वारा या फिर दूरभाष से प्रेषित कर देते हैं. अब लोग घर से बाहर निकलते समय मोबाइल अपने साथ रखना नहीं भूलते. सफर में कही जाएँ तो थोड़ी थोड़ी देर बाद अपने घर कॉल करते हुए मानों आँखों देखा हाल सुनाते रहते हैं.

कुछ लोग तो कॉल के पैसे बचाने के लिए मिस कॉल का भी सहारा लेते हैं. उनके घर वालों को मालूम है कि एक मिस कॉल का क्या मतलब है और दो मिस कॉल आने से क्या अभिप्रायः है. कुछ लोग अपने दोस्तों को कॉल वेटिंग के समय बिल्कुल भी बोर होते नहीं देखना चाहते क्योंकि कॉलर ट्यून की सुविधा इस अवधि के दौरान इनके मित्रों को सुरीला गीत सुना देती है. कई लोग तो केवल इस लिए मिस कॉल देते हैं ताकि उनका कॉल पर कोई खर्च न आये. अगर मिस कॉल पाने वाले को आवश्यकता होगी तो वह स्वयं ही कॉल बेक करके बात कर लेगा.

इसमें कोई शक नहीं के इस यन्त्र के बहुत से लाभ हैं परन्तु कभी कभी ये अपरिमित नुक्सान का कारण भी हो सकते हैं. अगर आपने किसी को सोते समय नींद से उठाकर बात करनी चाही तो उसका प्रकोप झेलना पड सकता है. इसी तरह किसी मीटिंग या गोष्ठी में इसकी घंटी बजने से अनावश्यक व्यवधान उत्पन्न होता है. अगर शौचालय में रहते हुए घंटी बजने लगे तो बहुत ही बुरा लगता है. अगर आप किसी की अंत्येष्टि में भाग ले रहे हों तो वहाँ इसके बजने से माहौल खराब होने लगता है. न तो कॉल स्वीकार कर सकते हैं और न ही घंटी बजते हुए ही छोड़ सकते हैं.

अगर आप छुट्टियाँ मनाने के लिए बाहर हैं तो ऐसे में आपके बॉस की घंटी आपका जायका बिगाड़ने के लिए काफी है. कई बार तो बॉस मोबाइल पर ही अपने कर्मचारियों को डांटने लगता है. ऐसी स्थिति में कोई भी ईश्वर से कह उठता है कि काश ये मोबाइल ही न होता तो कितना अच्छा था ! कभी कभी कोई कॉलर सामने वाले व्यक्ति को जाने बिना ही अपनी बात कहने लगता है जैसे उसे मालूम हो कि वह वांछित मित्र से ही बात कर रहा है. जब वह अजनबी व्यक्ति बाद में बताता है कि मैं वो नहीं जिससे आपको बात करनी है, तो बड़ी हास्यास्पद स्थिति बन जाती है.

मोबाइल पर अपनी पहचान बताते हुए कॉलर के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करके ही बात आगे बढानी चाहिए. मोबाइल पर कभी भी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर कॉल प्राप्तकर्ता द्वारा इसे रिकोर्ड कर लिया गया तो बड़ी शर्मिन्दगी हो सकती है.

मोबाइल के आने से कई लोगों को झूठ बोलने में कुछ ज्यादा ही मज़ा आने लगा है. अगर इनसे कोई पूछे कि आप इस वक्त कहाँ हैं तो ये घर पर होते हुए भी बाहर होने की बात करते हैं. अपने शहर में रहते हुए कहेंगे कि वे इस समय शहर से बाहर हैं. ऐसा करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता. अगर आपको ऐसा झूठ बोलते हुए आपके बच्चे सुन लें तो आप उनकी नज़रों में भी गिर सकते हैं. मोबाइल पर झूठ बोलना भले ही कोई पकड़ न पाए किन्तु यह आपको अपनी ही नज़र में गिराने के लिए तो पर्याप्त है.

मोबाइल की सहायता से अपराधी तत्व नए नए अपराधों को अंजाम देने में लगे हैं. अतः जब भी आपका मोबाइल गुम हो जाए तो तुरन्त इसकी रिपोर्ट पुलिस स्टेशन पर दें ताकि आप किसी भी बिन बुलाई मुसीबत से स्वयं को बचा सकें. आप जब भी अपने कार्य स्थल पर जाएँ तो मोबाइल को वाइब्रेशन मोड पर अर्थात चुपचाप रखें. यदि कार्यालय में रहते हुए कोई कॉल आ भी जाए तो तुरन्त बाहर एकांत स्थान पर जा कर ही इसे सुनना चाहिए. कई लोग फ़िल्मी गीतों की रिंग टोन बना कर ऊँचे स्वर में बजने देते हैं जो उचित नहीं है. सरकारी समारोहों में भाषणों के समय मोबाइल को शान्त स्थिति में रखना चाहिए. कक्षा में या किसी मीटिंग में भाग लेते समय मोबाइल का प्रयोग करना अभद्र व्यवहार की श्रेणी में आता है.

कुछ लोग मोबाइल में ऊंचे स्वर में बात करते हैं जो सही नहीं है. मोबाइल से बात करते समय अपनी आवाज केवल उतनी रखे जितनी कॉलर को सुनाने के लिए पर्याप्त हो. यदि मोबाइल पर बात करने के लिए स्थान व समय उपयुक्त न हो तो कॉलर को शालीनता से किसी अन्य समय पर बात करने के लिए निवेदन करना उचित रहता है. अगर किसी को आपसे बात करने में संकोच हो तो यथा सँभव ऐसे व्यक्ति से बात करने से बचना चाहिए. अगर आवश्यक न हो तो अपना मोबाइल नंबर हर किसी व्यक्ति को देने से परहेज़ करना चाहिए.
विचारणीय है कि मोबाइल जैसा यन्त्र मानव के लिए अत्यंत उपयोगी है बशर्ते इसका कोई दुरूपयोग न किया जाए. यदि इसे सीमित समय के लिए केवल आवश्यक होने पर ही उपयोग करें तो यह बातचीत करने एवं अपनी कार्यकुशलता में सुधार लाने हेतु एक अच्छा विकल्प हो सकता है.

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

बुरा न मानो ...सब सच है शायद

ये सच है

रोज़गार ख़बरों के तो
सब तलबगार होते हैं
चंद सिफारिशी ही मगर
बा-रोजगार होते हैं.

राहे वफ़ा में यूं तो
आशिक ही शहीद होते हैं
मगर इसके भी कहीं
कोई चश्मदीद होते हैं.

मर गए हैं कई लोग
यहाँ पर महामारी से
एक अदद डाक्टर से
कहीं इलाज होते हैं.

बच्चे इम्तिहाँ में यूं
अक्सर नकल करते हैं
जैसे वो अपनी ही
अक्ल की बचत करते हैं.

हुआ एक खून और कट गई
फिर से जेब ख़बरों में
भलाई के किस्से भी कहीं
कोई खबर बनते हैं.

सुना है सिर्फ सच्चाई की
यहाँ पर जीत होती है
मगर लाठी है जिसके पास
उसकी ही भैंस होती है.

बेकार है ये शोर इस
कोमनवेल्थ के लुटने का
है ये सांझी दौलत जो
सभी के हाथ आनी है.

हुआ क्या जो सड़ गया
ज़रा सा अन्न भंडारों में
सुना है आटा गीला तो
सिर्फ कंगाली में होता है.

न देखा न सुना हमने
गधों के सींग होते हैं
भला ऐसी ख़बरों के कहीं
कोई चिह्न होते हैं.

नहीं होता कोई बेअंत
सिर्फ एक नाम रखने से
वैसे ही अमर को भी
एक दिन मरना ही होता है.

बुधवार, 5 जनवरी 2011

नव वर्ष आगमन पर सर्दी

सर्दी में नया साल

नए साल ने दरवाजे पर दस्तक कुछ ऐसे दी है
सब लोग हैं परेशाँ कि हर तरफ भीषण सर्दी है.

मौसमे सर्दी में तो लुभाते हैं अखरोट और बादाम
मगर महँगाई से है त्रस्त यहाँ पर हर खासो-आम.

यूँ तो ज़मीं पर गर्मी बढ़ने का खतरा मंडराया है
मगर इस ठण्ड ने तो सारी दुनिया को जमाया है.

गर्मियों में तो हो जाता है हर हाल में गुज़ारा
लेकिन नहीं है कोई ठण्ड में ग़रीबों का सहारा.

गए साल में तो रह गईं बहुत सी उम्मीदें अधूरी
मालूम नहीं इस साल में वो सब कैसे होंगी पूरी.

न रहे कोई कमी हर शख्स की मुरादें पूरी करना
ऐ खुदा अपनी रहमत से सबकी झोलियाँ भरना.