My expression in words and photography

सोमवार, 29 नवंबर 2010

हिन्दी

आजकल हिन्दी में बहुत सी भाषाओं के शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं. इन देशज, विदेशज, तत्सम और तद्भव शब्दों में शायद उर्दू भाषा के शब्द बहुत अधिक हैं जिन्हें सब लोग आसानी से समझ लेते हैं. उल्लेखनीय है कि उर्दू वर्णमाला में “अलिफ़” पहला तथा “ये” अंतिम अक्षर होता है. उर्दू शब्दों का बढ़ता हुआ उपयोग हिन्दी भाषा की अदभुत संप्रेषणीयता एवं स्वीकार्यता से ही संभव हो पाया है. इसी भाव से प्रेरित होकर मैंने यह कविता लिखी है जो आज आपके समक्ष प्रस्तुत है.

हिन्दी हैं हम
यूं तो
कौमी एकता में
हिन्दी का
किरदार नुमाया है
लेकिन उर्दू ने
अलिफ़ से ये तक
अपना साथ निभाया है
देखो !
हिन्दी ने कितना बड़ा
दिलो जिगर पाया है
इसने न जाने कितने
उर्दू लफ़्ज़ों को अपनाया है
हर मुश्किल बोलचाल में
इसने आसान की है
मुल्क में तरक्की की राह
हमवार की है
इसके इस्तेमाल से
हिन्दी में नई रवानी है
जो जुबाने हिंद की
खूबसूरत कहानी है
कहते हैं
हिन्दी से
हिन्दुस्तान की
पहचान होती है
दुनिया में ये हकीकत
हर ज़ुबाँ से
बयान होती है
यूं तो
हमारे मुल्क में
कई ज़ुबानें बोलते हैं
मगर
भाई चारे की खातिर
सब हिन्दी बोलते हैं
बाहरी मुल्कों से बेशक
हम अपनी बात
अंग्रेजी में करते हैं
जनाब !
हिन्दी हैं
हम वतन हैं
हिन्दुस्तान में रहते हैं.

शनिवार, 27 नवंबर 2010

नई सुबह

एक लड़का
मैंने देखा
एक लड़का
जो गा रहा था
और बजा रहा था
सारंगी पर वे धुनें
जो थी जमाने के लिए
चला जा रहा था बस
अपनी ही धुन में
वह सबका
मनोरंजन करता हुआ
मुसीबत का मारा
लाचार बेबस
पैबंद लगे थैले में
ढो रहा था
शायद अपनी गरीबी
बढ़ता जा रहा था
आगे की ओर कहीं
अनजान पथ पर वह

आखिर क्यों होता है
ये सब
जमाने ने बनाया
गरीब इसको
होता है सबका
मनोरंजन क्यों इससे
मिलता है बदले में जो
रख लेता है वह उसको
न जाने कब लौटेंगे
वो दिन
जब गायेगा वह गीत
अपने लिए
और रहेगा जमाने में
फिर ऐसे
मुस्कुराती हुई
आती हो कोई
नई सुबह जैसे !

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

एक कविता

सब का सपना
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है
जब होगा सब के पास
रोटी कपडा और मकान
जियो और जीने दो पर
नहीं उठेगा सवाल
जैसा अधिकार होगा
वैसा ही कर्तव्य अपना है
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है

जब ना लड़ेगा कोई
धर्म या जाति के नाम पर
होगा आदर मानवता का
समानता के आधार पर
वसुधैव कुटुम्बकम की
उक्ति को साकार करना है
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है

बंटेगी जब नहीं धरती
अलग देशों के नाम से
बनेंगे नागरिक सारे
धरा के अपने आप से
समूची दुनिया को एक
शांतिप्रिय स्थल बनना है
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है

रविवार, 21 नवंबर 2010

दो लघु कविताएँ

पति और पत्नी
पति हमेशा पड़ता था
अपनी पत्नी पर भारी
बोला मेरी तनख्वाह से
फिर भी कम है
तुम्हारी मेहनत सारी
पत्नी बोली
भूल गए क्या
सुबह-सवेरे उठकर के जो
चाय मैं तुम्हें पिलाती
ऑफिस जाते समय टिफिन
जो अपने साथ ले जाते
लौट के तुम
जब वापिस आते
घर आँगन को सुन्दर पाते
पति हो चाहे कितना भारी
फिर भी रहता है आभारी
पति में छोटी इ की मात्रा
पत्नी में बड़ी ई है आती
फिर भी दोनों में कौन बड़ा है
समझ तुम्हें यह क्यों न आती !


थैली पोलीथीन की
अरे भाई
तूने यह
पोलीथीन की थैली
यहाँ क्यों गिराई
पर्यावरण को
शुद्ध रखने की बात
मेरे मन को भाई
पोलीथीन बहिष्कार जानकर
यह थैली
मैंने यहाँ गिराई.

शनिवार, 20 नवंबर 2010

एक कविता

अंतर्द्वंद
रहता हूँ मैं
अनजान जगह पर
ऐसा लगता है जैसे
कोई पेड़ उखाड कर
उगा दिया हो
एक अजनबी और
अनजान सी जगह पर
फिर भी लहलहाता हूँ मैं
बांटता हूँ दुःख-सुख लोगों के
यात्रा पर निकलते हैं जो दूर
थक कर बैठ जाते हैं
मेरी छाया में
और सोचते हैं
आगे बढ़ने की मंजिल पर
दूर करता हूँ मैं
इन सब की थकान
फिर सोचता हूँ कि
मैं कोई अजनबी
अनजान पथ पर नहीं
सब कुछ देखा–देखा सा है
मैं बोल नहीं सकता तो क्या
सुनता तो हूँ सब की बात
बांटता हूँ
सब में खुशियों के पल
बुझती हो जैसे प्यास
बिना पिए जल
सुनकर लोगों की करुण व्यथा
भूल जाता हूँ
मैं अपनी वेदना
पाकर प्रेरणा इन सब से फिर
खड़ा रहता हूँ
मैं एकदम अडिग
जैसे कभी उखड़ा ही न था !

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

बच्चों के लिए एक कविता

सबसे बड़ी सीख
चला जा रहा था मैं एक दिन
करने गांव की सैर
हुई दोपहर जंगल में फिर
नहीं जान की खैर
थोड़ी देर में आया हाथी
नहीं था मेरा कोई साथी
पहले तो कुछ दिल घबराया
बाद में फिर आगे बढ़ पाया
थोडा चलने पर रीछ मिला
उसने तो मुझ को देखा नहीं
पर मैंने उसको देख लिया
याद आई फिर एक कहानी
दो मित्रों की वही पुरानी
एक मित्र चढ़ गया पेड़ पर
दूजा गया लेट धरती पर
आया रीछ और गया सूंघ कर
दे गया सब को सन्देश नया
विश्वासघाती से बच कर रहना
नहीं कोई सीख इससे बढ़िया.

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

शाने-हिंद

हिन्दी
भारत की एक जुबान है
यह मेरे देश की शान है
सब हिन्दी में बातें करें
अब हिन्दी में ही लिखा करें.

प्राचीनतम यहाँ सभ्यता
विविधता में जहां एकता
दुनियां में इस का नाम है
यह मेरा देश महान है.
भारत की एक जुबान है
यह मेरे देश की शान है.

हम यूं बोलते कई बोलियाँ
फिर भी दूरियाँ हैं दरमियाँ
लोगों को अपने ये जोड़ती
यही एकता की मिसाल है.
भारत की एक जुबान है
यह मेरे देश की शान है.

आजाद हम और देश आज़ाद
मिलकर कहें सब जिंदाबाद
हिन्दी में सब की आन है
हिन्दी से सब की शान है.
भारत की एक जुबान है
यह मेरे देश की शान है.

गूंजेगी अब यह चारों ओर
आएगी लेकर नई सी भोर
हर जगह चर्चा ये आम है
अब हिन्दी सुबहो-शाम है.
भारत की एक जुबान है
यह मेरे देश की शान है.

हिन्दी दिलों को जोड़ती
मुल्कों की सरहदें तोड़ती
हिन्दी से अदभुत शान है
जो हिन्द की पहचान है.
भारत की एक जुबान है
यह मेरे देश की शान है.

आओ हिन्दी में बातें करें
अब हिन्दी में ही लिखा करें.

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

बच्चों के लिए


बूझो तो जानें
प्राणी जगत में मिलता यह
एक ऐसा विचित्र जीव है
जिस पर आज टिकी हुई
इस मरू-जीवन की नींव है.

मरुस्थल का जहाज़ कहलाता
हर मुश्किल आसान बनाता
रेतीली राहों पर चल कर
सब को अपनी मंजिल पहुंचाता.

सूखे के दिनों में कुछ न मिलता
कम चारे पानी पर रहता
काम मगर फिर भी यह करता
मेहनत से कभी न डरता.

अकाल से पीड़ित देहातों में
इनकी महिमा न्यारी है
इसका दूध है जीवन अमृत
जो स्वास्थ्यवर्धक गुणकारी है

बच्चों के लिए

नन्हे मुन्ने बच्चे
नन्हे मुन्ने बच्चे हमारे
लगते सब को प्यारे प्यारे
जैसे सूरज चांद सितारे
झिल-मिल चमकें आसमान में
वैसे ही इनका बचपन महके
हर घर आँगन संसार में
बच्चों में रहते भगवान
जिसको मानें सब इंसान
झूठ कभी इन्हें छू नहीं सकता
बचपन इनका भोला लगता
आओ सीखें इनसे सीख
मिल कर रहें तो सब हो ठीक
एक दूजे से करें न नफरत
उठ कर रोज करें सब कसरत
होंगे स्वस्थ तो खुशियां होंगी
चारों ओर दिवाली होगी !

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

ऐसे होती है कविता

कविता
सुबह सवेरे आसमां पर
जब लाली होती है
करते हैं खग कलरव
तो फिर कविता होती है.

पिघल कर बर्फ पहाड़ों से
जब झरना बनती है
बहता है पानी झर झर कर
तो कविता होती है.

छाए घटा घनघोर
तो फिर बरसात होती है
नाचे ऐसे में मोर
तो वह कविता होती है.

खिलें बागों में फूल
तो बहार आती है
गुनगुनाएं भंवरे कलियों पर
तो कविता होती है.

परोपकार में तो
दूसरों की भलाई होती है
हो जन जन की सेवा
तो फिर कविता होती है.

कहने को मेरे देश में
फसल भरपूर होती हैं
जब खाएं सब भरपेट
तो फिर कविता होती है.

मुस्कुराएँ सुखों में तो
न कोई बात होती है
गम में भी न घबराएं
तो फिर कविता होती है.

देखें दर्पण में तो
अपनी तस्वीर दिखती है
“दिल में क्या है” जो दिखाए
तो वह कविता होती है.

ईमानदारी यूं तो
सर्वोत्तम नीति होती है
हों बेईमान दण्डित
तो फिर कविता होती है.

सुख चैन कहाँ है?

सुख चैन कहाँ है
अहिंसा के नगर में
शान्ति की डगर पे
प्रेम गंगा बहे जहां
सुख चैन वहीँ है.

भाई चारा हो जहां
हर कोई प्यारा हो वहाँ
बजे चैन की बंशी जहां
सुख चैन वहीँ है.

अभाव से मुक्त हो
अभय से युक्त हो
स्वतंत्र समाज है जहां
सुख चैन वहीँ है.

स्वार्थ से दूर हो
परमार्थ को समर्पित हो
मिले पाप से मुक्ति जहां
सुख चैन वहीँ है.

न छज्जू के चौबारे
न बलख न बुखारे
हमारे सब हो जहां
सुख चैन वहीँ है.

सोमवार, 1 नवंबर 2010

ऐसी है हिन्दी

ऐसी है हिन्दी
कहते हैं हिन्दी ऐसी है या वैसी है
कोई कहता है ना जाने कैसी है
भई हम तो बस इतना जानते हैं
ये वैसी है जैसी आप लिखते हैं
पढते हैं और खूब समझते भी हैं.

ये है माँ जैसी करुण सीधी-सादी
सरल सहज और नाज़ुक सी
न तो कठोर जो कहीं चोट करे
और न ही इतनी नर्म है कि
कोई महसूस ही न कर पाये.

हिन्दी तो है एक ठंडी बयार
जो शीतलता दे सब को और
आत्मसात कर ले दूसरों के
कड़वेपन को भी अपने अन्दर
और लगे जैसे पानी में पानी.

बोलियों के समुन्दर में जैसे
एक मोती सी चमकती बूँद
सर्द मौसम में नर्म सी धूप
जो सब को गर्माहट तो दे
मगर बदन को न जलाये.

एक प्रेम की बोली जो आप
हम और शायद सब बोलते हैं
एक अहसास माँ की जुबाँ का
जो सब को है मगर फिर भी
हिन्दी बोलने से हिचकिचाते हैं.

ये हमारी राजभाषा भी है
मुझे बहुत अच्छी लगती है
और शायद आप सबको भी
फिर क्यों नहीं अपनाते अपनी
मातृभाषा यानि हिन्दी को ?