My expression in words and photography

रविवार, 29 सितंबर 2013

एक अध्यापक की सेवानिवृति

बहुत बरस तक न जाने
कितने शिष्यों को हमने पढ़ाया
निःस्वार्थ भाव से प्रेरित कर
जीवन पथ पर आगे बढ़ाया.
खुशी है मुझको मेरा जीवन
कुछ आपके काम भी आया
आपके स्नेह और विश्वास ने
मुझे इसके योग्य बनाया.
आज है मौका लेखे-जोखे का
क्या किया और क्या हो न पाया
इतना तो संतोष है लेकिन
स्कूल तुम्हारा मेरे मन भाया.
आभारी हूँ सबके सहयोग की
अब सेवा-निवृति का दिन आया
मैं भी कुछ कर पाऊँ घर पर
वक्त आराम करने का आया!
कहीं पर भी रहें हम तुम
रहोगे मेरे बन कर तुम
जरूरत हो तुम्हें जब भी
चले आएँगे फ़ौरन हम!
न भूलोगे कभी हमको
न भूलेंगे कभी हम भी
रहेंगे याद बन कर हम

भुला नहीं पाएंगे हम तुम! - अश्विनी रॉय ‘सहर’

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