My expression in words and photography

शनिवार, 14 सितंबर 2013

अपराध-मुक्त समाज की परिकल्पना

हमारी राजधानी में हाल ही में एक दुष्कर्म के मुकद्दमें पर फैसला आया है जिसमें सभी अभियुक्तों को फांसी की सजा दी गयी है. कुछ लोगों को विश्वास है कि ऐसा होने से लोगों को नजीर मिलेगी और वे कोई गुनाह करने से पहले कई बार सोचेंगे. परन्तु ऐसा संभव होगा, कम से कम अभी तक तो इसकी संभावना नज़र नहीं आती. आप सबको याद होगा कि बरसों पहले एक फ़ौजी अफसर जनाब चौपड़ा साहेब के बच्चों का दिल्ली में अपहरण हुआ था और बाद में उनके मृत शरीर ही पुलिस के हाथ लगे थे. पूरे देश में इसका विरोध हुआ था तथा बिल्ला व रंगा नाम के दो अपराधियों को इस प्रकरण में फांसी की सजा सुनाई गई थी. लोगों ने तब भी ऐसा ही सोचा था कि इस प्रकार की घटनाएं अब बंद हो जाएँगी. परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ. तो फिर इन सब घटनाओं पर लगाम कैसे लग सकती है?
अगर देखा जाए तो हमारी न्याय प्रणाली अत्यंत धीमी गति से चलती है. कुछ मामलों में तो ये इतनी धीमी गति पर चलती है कि अपराध के शिकार भी दुनिया छोड़ जाते हैं और अपराधी बच निकलते हैं. इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों को लगता है कि वे छूट जाएंगे. अतः अपराध होते ही रहते हैं. हमारी शिक्षा प्रणाली भी दोष पूर्ण है. लोग शिक्षित होने के बावजूद संस्कारित नहीं बन पाते. उन्हें सच और झूठ में भेद नहीं पढ़ाया जाता. एक ही कक्षा में बैठे हुए छात्र अपने साथियों के विषय में बुरा सोचते रहते हैं. जब बुराई की मात्रा अधिक हो जाती है तो वह इन्हें अपराध के मार्ग पर ले जाती है.
सरकार द्वारा शिक्षा पर न के बराबर ही धन खर्च किया जाता है जबकि लोक-लुभावन योजनाओं पर बिना किसी बजट के ही धन खर्च होता रहता है. अपराध करने वाले व्यक्ति की जाति व धर्म पर विचार होता है. अगर वोटों का नुक्सान नज़र आए तो अपराधी के अपराध पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता. हमारी पुलिस भी उतनी निष्पक्ष नहीं है जितना उसे होना चाहिए. अगर आप रसूखदार हैं तो थाने में प्राथमिकी दर्ज हो जाती है अन्यथा नहीं. जब गरीबों को न्याय न मिले तो वे अपराध की दुनिया में आगे बढ़ने लगते हैं. एक या दो अपराधियों को फांसी देने से कोई लाभ नहीं होगा जब तक हम उन कारकों को ही समाप्त न कर दें जिनसे अपराध करने की प्रवृति बनती है.
भ्रष्टाचार भी लोगों में सामाजिक विद्वेष का एक बड़ा कारण है जिससे कुछ लोग अमीर व अन्य अत्यंत गरीब हो रहे हैं. बराबरी पर आने के लिए लोग छोटे रास्ते द्वारा धन कमाना चाहते हैं, जो इन्हें अपराध की दुनिया में ले जाता है. स्कूलों में तो अच्छी शिक्षा का अभाव पहले से ही बना हुआ है, ऊपर से हमारे सिनेमा हत्या, नशा, बलात्कार, हिंसा व तड़क-भड़क वाले अश्लील नज़ारे दिखा कर हमारे युवाओं को खराब कर रहे हैं. सभी बच्चे इतने भाग्यशाली नहीं हैं कि उन्हें पढ़े लिखे माँ-बाप का सानिध्य एवं प्रेम मिले. इनके अपराधिक पृष्ठभूमि वाले माँ-बाप अपनी ही संतान का भविष्य दाव पर लगा कर इन्हें अपराध की दुनिया में भेज देते हैं.
हमारा समाज जितना शिक्षित होगा उतना ही मानवीय मूल्यों एवं संवेदनाओं के प्रति संवेदनशील होगा. हमारी सरकार नहीं चाहती कि लोग शिक्षित हों. अगर लोग शिक्षित हो गए तो उन्हें भले-बुरे की पहचान हो जाएगी. फिर ये लोग बुरे व्यक्तियों को कभी भी अपने जन प्रतिनिधियों के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. अगर हमारे जन-प्रतिनिधि साफ़-सुथरी छवि वाले होंगे तो वे किसी भी कीमत पर अपराध नहीं पनपने देंगे. परन्तु देखने में आया है कि हमारे नेताओं का चरित्र शक के दायरे में है. कई लोगों के विरुद्ध अपराधिक मामले चल रहे हैं, जिनपर फैसला शायद इनके जीवन काल में आना तो असंभव है.

इस लेख का उद्देश्य अपराधियों के प्रति नरम रवैया अपनाना नहीं है, परन्तु उन विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करना है जिनसे हमारे समाज में दिनों-दिन अपराध बढ़ रहे हैं. हमें न्यायोचित न्याय प्रणाली की आवश्यकता है जो सभी प्रकार के अपराधियों के साथ सख्ती से पेश आए. ज्ञात स्त्रोतों से अधिक आय रखने पर कुछ लोग तो बच जाते हैं परन्तु हमारे जैसे व्यक्तियों को हज़ार पांच सौ रूपए कर जमा कराने के लिए तुरंत नोटिस जारी हो जाते हैं. देखा गया है कि कुछ लोग करोड़ों की ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती, परन्तु अगर कोई अपराधी सौ या दो सौ रूपए की चोरी करे तो उम्र भर सलाखों के पीछे सडता रहता है. अपराधी मनोवृति हमारे समाज से ही पनपती है. अतः हमें अपनी सोच को बदलना होगा ताकि अपराध को कभी भी संरक्षण न मिल सके. जब अपराधियों को संरक्षण मिलना बंद हो जाएगा तो फिर किसी भी परिवार में अपराध नहीं पनप सकेगा.

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