My expression in words and photography

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

दिल्ली में क्या हुआ?

दिल्ली विधान सभा के परिणामों को शालीनता से स्वीकार करना सभी के लिए आवश्यक है. हारने वालों के लिए भी और प्रचंड बहुमत से जीतने वालों के लिए भी. इन परिणामों से यह स्पष्ट हो गया है कि आप अपने प्रतिद्वंदी को कमतर न आंकें. कांग्रेस ने पराजयों का सिलसिला जारी रखा है. उन्होंने अपनी पुरानी हारों से कोई सबक नहीं लिया. लगता है कि ये लोग केवल इस बात से ही संतुष्ट हैं कि बी.जे.पी. हार गई. कमोबेश सभी टी.वी. चैनलों ने बी.जे.पी. की हार के अपने-अपने कारण गिनाए हैं.
मेरे विचार से बी.जे.पी. को इस हार से कतई विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. यदि देश के अन्य राजनैतिक दल जैसे तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, यूनाइटेड जनता दल, समाजवादी दल आदि बी.जे.पी. की हार पर् खुशियाँ मना रहे हैं तो ये उनका छिछोरापन है. लगता है इन सबने भी अपनी पुरानी भूलों से कोई सबक नहीं लिया. बी,जे.पी. की वर्तमान हार केवल दिल्ली तक ही सीमित रहेगी, ऐसा मुझे विश्वास है क्योंकि ये अन्य राज्यों में अपनी गलतियों को दोहराने की भूल कतई नहीं करेगी. जहां तक अन्य दलों की बात है, उनका हाल भी कांग्रेस की तरह ही होगा, इसकी पूर्ण संभावना है.
दिल्ली में जो आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है वह कोई उनकी किसी महान उपलब्धि के लिए नहीं बल्कि उनके बड़े-बड़े वायदों को देख कर आम आदमी ने उन्हें जिताया है. बी.जे.पी. ने अपना प्रचार देर से शुरू किया तथा किरण बेदी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर दिया. यह परिवर्तन स्थानीय नेताओं को रास नहीं आया तथा उन्होंने जमीनी स्तर पर् चुनाव प्रचार में कोई तवज्जो नहीं दी. किरण बेदी ने अपने रोड शो में अनुशासन व सख्ती का पाठ पढ़ाना शुरू किया तो कुछ लोग इससे बिदक गए. रही कसर आम आदमी पार्टी के दुष्प्रचार ने पूरी कर दी कि जीतने के बाद किरण बेदी सभी अवैध झोंपड़पट्टटे, फुटपाथ व रेहडी वालों को हटाएगी.
अपनी चुनावी असफलता के बाद किरण बेदी ने इसे अपनी हार बताने की बजाय पार्टी की हार कहा है जो उचित नहीं है. पार्टी को चाहिए कि वह भविष्य में अपने कार्यकर्ताओं को विश्वास में लेकर ही कोई रणनीति तैयार करे अन्यथा इस प्रकार के नुक्सान झेलने पड़ सकते हैं. ये परिणाम न तो मोदी सरकार की नीतियों पर् जनमत है और न ही केजरीवाल के सुशासन पर जनता की मोहर है. ये तो विशुद्ध स्थानीय प्रतिक्रिया है जिसकी परिणिती पार्टी की हार के रूप में सामने आई. अब पार्टी को अब अपना कैडर संभालने की आवश्यकता है ताकि अगले चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया जा सके.
इस पार्टी में शत्रु नाम से पहचाने जाने वाले शत्रुओं की भी कोई कमी नहीं है. दिल्ली से अधिक अनुशासन की आवश्यकता तो बी.जे.पी. कार्यकर्ताओं को है. कई नेताओं ने जाति एवं धर्म के सम्बन्ध में अनावश्यक बातें कही जो निंदनीय है. प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे ऐसे सभी लोगों से सख्ती के साथ निपटें क्योंकि इनके कारण पूरी पार्टी की छवि खराब हो रही है. वर्तमान चुनावों में जिन नेताओं ने आवश्यकता से अधिक ऊंचे स्वर में पार्टी का विरोध किया उन्हें पार्टी से निकालने पर् भी विचार होना चाहिए. किरण बेदी घटनाक्रम को शायद एक बुरे सपने की तरह भुला देना ही सबके हित में होगा.

कुछ लोगों का कहना है कि बी.जे.पी. का प्रचार नकारात्मक था जो कुछ हद तक सही भी है. लेकिन इस बार हर पार्टी का चुनाव नकारात्मक रहा है. आम आदमी पार्टी ने कोई खास सकारात्मकता दिखाई हो, ऎसी भी बात नहीं है. आम आदमी पार्टी का यह आरोप कि बी.जे.पी. ने अपने सभी नेताओं को प्रचार में लगाया, सही नहीं है. क्या उनके सब नेता प्रचार नहीं कर रहे थे? इनके नेता तो हरियाणा और पंजाब से दिल्ली में प्रचार करने गए थे. मुझे लगता है कि हारने वालों को बहुत सी बातें कही जाती हैं. यह जीतने वालों की फितरत है कि वे ऐसा कहें. परन्तु हारने वाले अन्य दल बी.जे.पी. की हार पर इतने उत्साहित क्यों हैं? ये बात समझ से परे है. लोकतंत्र में हर पार्टी को कोई न कोई सबक सीखने को मिलता है. ये भी एक सबक है जिसे शालीनता से पढ़ना चाहिए.

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