My expression in words and photography

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

आम आदमी कौन है?

भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी अधिकतर संख्या गाँवों में रहती है. गाँव, जहां पर्याप्त साफ़-सफाई, पक्की गालियाँ, स्कूल, अस्पताल, सामुदायिक स्थल तथा बिजली व पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी रहती है. गाँव के लोग एक आम आदमी की तरह जीवन बसर करते हैं. यह अत्यंत हैरानी की बात है गत वर्ष एक नई तरह के आम आदमी का उदय हुआ है. यह आम आदमी दिल्ली में रहता है जहां एक कमरे के मकान का मालिक भी लखपति है. क्यों न हो .... आखिर देश की राजधानी जो है! राजधानी के लोग सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं. उन्हें बढ़िया सड़कें, अस्पताल, स्कूल, कालेज, अदालतें एवं रोज़गार के वे सभी अवसर प्राप्त हैं जो शायद गाँव का आदमी कभी सोच ही नहीं सकता. तो क्या आम आदमी दिल्ली में रहता है? आइए, इस पर मंथन करें.
मनुष्य स्वभाव से ही परिवर्तन का समर्थन करता आया है. जब वह पैदल नहीं चलता तो साइकिल या रिक्शा की माँग करता है. रिक्शा से मन भर गया तो ऑटो या टैक्सी में चलना पसंद करता है. जब इससे भी संतुष्ट न हो तो वह बस या मेट्रो की सवारी करने लगता है. लेकिन जल्द ही उसे पता चलता है कि मेट्रो में तो आम आदमी चलते हैं. तब उसे मेट्रो की जगह अपनी कार अच्छी लगने लगती है. अपनी कार तो चार या पांच लाख तक की ही हो सकती है जबकि सरकारी कार बीस लाख रूपए या इससे भी अधिक की होती हैं. जब यही आम आदमी मुख्यमंत्री बन जाता है तो उसे लगता है कि वह देश का प्रधानमंत्री भी बन सकता है. वह शीघ्र ही मुख्यमंत्री का पद छोड़ कर प्रधानमंत्री बनने की दिशा में चलने लगता है. क्या आम आदमी को प्रधानमंत्री बनने का अधिकार नहीं है? क्यों नहीं, प्रधानमंत्री तो कोई भी बन सकता है.
कोई भी व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी हो सकता है, परन्तु मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के पद को आम पद समझ लेना भारी भूल होगी. ये सभी पद उच्च स्तर की जिम्मेवारी और सत्यनिष्ठा से बंधे होते है. किसी भी आम आदमी को इन संवैधानिक पदों से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. हमारे देश में लोकतंत्र है जो एक अच्छी बात है. परन्तु कुछ लोग केवल वोट प्राप्त करने के लिए जनता को गुमराह करते रहते हैं. लोगों को आधे रेट में बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त वाई-फाई दे कर आप क्या सन्देश देना चाहते हैं? अगर आप आम आदमी के नाम पर ही खजाना लुटा देंगें तो विकास कार्यों के लिए बजट कहाँ से आएगा? अमीर लोगों की संख्या इतनी अधिक भी नहीं है कि वे टैक्स देकर आपका खजाना भर दें.
हमारे देश में काले धन की उत्पत्ति क्यों होती है? क्या किसी ने इस पर विचार किया है? जब सरकार भलाई के नाम पर मुफ्त में रुपया लुटाने लगे, मुफ्त में मकान, बिजली और पानी देने लगेगी तो काम कौन करना चाहेगा? ऐसे समाजवाद का हश्र रूस जैसे देश पहले ही देख चुके हैं. समाजवाद से पेट नहीं भरता. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम गरीबों या आम आदमी के हितों के विरुद्ध हैं.
अगर आम आदमी की सच्ची सेवा करनी है तो उसे शिक्षित करो. उसे रोज़गार उपलब्ध कराओ ताकि वह धन कमा कर न केवल अपना मकान बनाए बल्कि पानी और बिजली का बिल भी चुकाए. वह अपनी आय इतनी बढाए कि सरकार को भी कर अदा करे ताकि वह इसे कल्याणकारी कामों पर खर्च कर सके. आज सरकार का आधा बजट केवल क़र्ज़ लिए रुपयों को चुकाने में चला जाता है. बचे हुए आधे धन को सरकार के मंत्री तथा कर्मचारी खर्च कर देते हैं. जो शेष बचता है उसे गरीबों में बांटने के लिए नए- नए ढंग तलाश करने में लगा देते हैं. विकास कार्यों के लिए तो बजट बचता नहीं, उलटे लोगों को ये नसीहत दी जाती है कि वे अपने बैंक के कर्जे भी अदा न करें. इन सब बातों से हमारा देश कहाँ जाएगा? कैसे तरक्की होगी?
आज आम आदमी को मूर्ख बना कर उसे तात्कालिक लाभ दिया जा सकता है परन्तु ये सब लंबे समय तक नहीं चल सकता. यदि धन कमाया न जाए तो कुबेर के बड़े से बड़े खजाने भी खाली हो जाते हैं. क्या लुटाने के लिए केवल सरकारी खजाना ही रह गया है? दिल्ली में आम आदमी के तथाकथित नेता लाखों-करोड़ों रूपए की संपत्ति रखते हैं. क्या उन्होंने कभी किसी आम आदमी का बिजली का बिल जमा करवाया? कम से कम हमें तो ऐसा नहीं लगता. हाँ, ऎसी ख़बरें अवश्य पढ़ी हैं कि जिन लोगों का बिजली कनेक्शन बिल जमा न कराने से कट गया था, उनकी तारें अवैध ढंग से जोड़ दी गई. इससे क्या सन्देश गया? स्पष्ट है कि आप जो चाहे मनमानी करो, क्योंकि आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. क्या यह दल देश के नागरिकों को यही सन्देश देना चाहता है? अगर हाँ, तो वह दिन दूर नहीं जब इनका भी हाल हमारे देश के सर्वोच्च राजनैतिक दल की तरह हो जाएगा. आज उस दल के नेता अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं परन्तु उनकी बात कोई सुनने को ही तैयार नहीं है. यह स्पष्ट है कि इन्होंने भी आम लोगों को उम्मीद से कहीं अधिक सब्ज-बाग दिखाए थे. जब ये नेता इनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तो इन्हें सड़क पर ला पटका.  
हम अच्छी तरह जानते हैं कि आम आदमी पार्टी भले ही सरकार बना ले, लेकिन वह जनता को वो सभी खैरातें नहीं बाँट पाएगी, जिनका उल्लेख इनके नेताओं ने किया है. अगर आप आधी दिल्ली को पानी और बिजली पर सब्सिडी देंगे तो बचे हुए अन्य लोग भी इसकी माँग करेंगे. अगर आपने सबको खुश नहीं किया तो समाज में असमानता बढ़ेगी. इसी असमानता के कारण अपराध बढते हैं जो बिगड़ती हुई क़ानून और व्यवस्था के लिए जिम्मेवार हैं. हमें तो लगता है कि सरकार किसी की भी बने, लेकिन आम आदमी ही पिसता है.

आज आम आदमी का स्थान ‘छद्म रूप’ के आम आदमी ने ले लिया है. अब गाँवों में रहने वाले आम आदमी को लगता है कि ‘आम’ आदमी तो केवल दिल्ली में ही रहता है. जिस आदमी ने आम आदमी पार्टी बनाई वह भी गाँव से ही चल कर दिल्ली आया. उसने गाँव में रहने वाले आम आदमी के लिए तो कुछ नहीं किया किन्तु दिल्ली में आ कर नई तरह के आम आदमी भी तैयार कर दिए. अब इन्हीं तथाकथित आम लोगों की सरकार भी बन जाएगी. क्या आप इन्हें वास्तव में आम आदमी समझते हैं? 

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