My expression in words and photography

सोमवार, 21 जनवरी 2013

मौसम-ए-बहार



मौसम-ए-बहार है या नज़र का जादू
अब आप और भी खुशनुमां हो रहे हैं.

फज़ा में हैं महक औ’ रौनाइयां
हर तरफ गुल-ए-गुलज़ार हो रहे है.

चलो भूल जाएँ हम कल की बातें
नए जज़्बात हर घड़ी रौशन हो रहे हैं.

किसी खिजाँ से अब डर नहीं लगता
अहले-गुलशन में नए फूल खिल रहे हैं.

शीराज़-ए-हयात टूटने को है ‘सहर’
फिर भी ये फूल हर सूं मुस्कुरा रहे हैं. 

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