My expression in words and photography

सोमवार, 21 जनवरी 2013

गज़ल


ज़ह्नो-दिल आज तक मुअत्तर हैं

कितनी दिलकश थी रात फूलों की.


रूह को ताजगी-सी मिलती है

जब भी होती है बात फूलों की.


रंग, खुशबू, बहार और निकहत

है अजब कायनात फूलों की.


अब तो पूरे शवाब पर है बहार

देखनी है बरात फूलों की.


गुलिस्तां को उजाड़ने वाला

अब भी करता है बात फूलों की.


खिलना और खिल के ख़ाक में मिलना

बस ! यही है हयात फूलों की.
                           असरे-कलम - श्री बुनियाद हुसैन ‘ज़हीन’ बीकानेरी

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