My expression in words and photography

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

गज़ल


इसलिए दिल परेशान है
हर तरफ इक बियाबान है.

अपने चेहरे, सजाए रहो
आइनों की ये दुकान है.

आदमी कह रहे हो जिसे
वो तो हिन्दू-मुसलमान है.

वो जो महफूज़ खुद ही नहीं
वो हमारा निगहबान है.

वो कभी खुद नहीं झाँकते
उनका अपना गिरेबान है.

तुम हो मालिक रियाया हैं हम
ये भी क्या वक्त की शान है.
-साभार, “रौशनी महकती है” श्री सत्य प्रकाश शर्मा के असरे कलम से.

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