प्रस्तुत कविता के सन्दर्भ में आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि यहाँ “कवि” शब्द का प्रयोग स्वयं के लिए नहीं अपितु उन परिस्थितियों के लिए किया है जिनमें कविता लेखन सुगमता से हो सकता है. जहां तक मेरा प्रश्न है मैं वास्तव में कोई कवि नहीं हूँ ...हाँ थोड़ी बहुत अपने विचारों की अभिव्यक्ति इस ब्लॉग के माध्यम से करता रहता हूँ. आशा करता हूँ कि मुझे आप सब प्रबुद्ध जनों एवं कवियों का आशीर्वाद एवं स्नेह प्राप्त होता रहेगा.
मैं कोई कवि नहीं
न ही पहुँच सकता हूँ
वहाँ जहां न पहुंचे रवि
मैं कोई कवि नहीं.
जीवन में जब कष्ट न हों
मुख से निकली कोई आह न हो
अंतर्मन में कोई घाव नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
प्रकृति में कोई निखार न हो
बागों में छाई बहार न हो
पेड़ों पर पंछी गाएं नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
आकाश में बादल छाये न हों
मधुवन में नाचे मोर न हों
बिन बादल के बरसात नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
स्वतंत्रता का संघर्ष न हो
जुल्मों का सहना सहर्ष न हो
फिर भी मन में कोई पीड़ा नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
समाज में छोटा बड़ा न हो
छोटी बातों पर अडा न हो
आपस में कोई भेद नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
कवि बहुत हैं दुनिया में
रहते हैं बड़ी बड़ी सुविधा में
धन दौलत से भी तृप्ति नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
असली कवि जहां मिलता है
वहाँ रवि भी दुर्लभ रहता है
ढूँढ पाना फिर भी कठिन नहीं
मैं कोई कवि नहीं.
भाई साहब,
जवाब देंहटाएंनमस्कारम्!
यह आपकी विनम्रता है कि इतने घनीभूत भाव उड़ेलकर भी कहते हैं कि-
"मैं कोई कवि नहीं"! यह विनम्रता बनाए रखें। तथास्तु!