My expression in words and photography

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

वतन की याद

मेरा वतन
मुझे आज मेरा
वतन याद आया
भूला ही कहाँ था
जो फिर याद आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

दोस्तों से मुलाकातें
वो मोहब्बत की बातें
ठंडी ठंडी बयार में
गुजरती थी रातें
था सब कुछ तो अपना
नहीं कुछ पराया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

वो माँ की दुलारें
अपनों की मनुहारें
कभी नर्म धूप और
फिर ठंडी बौछारें
हर शाख पर थी रौनक
हर गुंचा मुस्कुराया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

कोयल के सुरों में वो
सावन के हसीं झूले
कितना ही भुलाया
मगर फिर भी नहीं भूले
जैसे ही घटा बरसी
बरबस वो याद आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

पल पल में शोख मस्ती
हर लम्हा हसीन
रहते थे मिल के ऐसे
जिंदगी थी पुर-सुकून
न जाने किस घडी मैं
अपना घर छोड़ आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

वो दिलकश अदाएं
देखते ही मुस्कुराना
जाते हो तो सुनो जी
घर जल्दी लौट आना
उठते ही रोज सुबह
उसका ख्याल आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

भूला ही नहीं मुझ को
अब तक भी वो मंजर
वो जुदाई के लम्हे
थे जैसे कोई खंज़र
न चाहते हुए भी मैं
वहाँ सबको छोड़ आया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

वो अहिंसा की धरती
है जो अमन की निशानी
कही जो बात सबने
हमने भी वही मानी
मुझे नाज़ इस पर
मैं हूँ भारत का जाया
मुझे आज मेरा
वतन याद आया.

2 टिप्‍पणियां:

  1. देशभक्ति से ओतप्रोत यह कविता लाजबाब है. मुझे अपना एक गीत याद आ गया. यह गीत मैंने लन्दन में लिखा था .


    बदरी के छतिया के चीरत जहजवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.
    लन्दन से लिखऽतानी पतिया पँहुचला के,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    दिल्ली से जहाज छूटल फुर्र देना उड़ के,
    बीबी बेटा संगे हम देखीं मुड़ मुड़ के.
    पर्वत के चोटी लाँघत, बदरी के बीचे,
    नीला आसमान ऊपर, महासागर नीचे.
    लन्दन पँहुच गइल लड़ते पवनवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    हीथ्रो एयरपोर्टवा से बहरी निकलते,
    लागल कि गल गइनी थोड़ी दूर चलते.
    बिजुरी के चकमक में देखनी जे कई जोड़ा,
    बतियावें छतियावें जहाँ तहाँ रस्ते.
    हाल चाल पूछनी हम अपना करेजवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    हर्टफोर्डसर पँहुचली सँझिया के बेरवा,
    जहाँ बाटे कारखाना, जहाँ बाटे डेरवा.
    डेरवा के भीतर एसी, सब सुख बा विदेशी,
    चट देना फोन कइली बीबी नईहरवा.
    ठकचल बा बंगला विलायती समनवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    भारत से अफ्रीका, फेरु युके चली अइनी,
    रुपया, सिलिंग, डालर, पाउन्ड हम कमइनी.
    माईबाप चहलें से हम बनि गइनी,
    अपना सपनवा के धूरि में मिलइनी.
    बेमन के नाता जुड़ल हमरो मशीनवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    केहू नाहीं टोवे रामा भावुक के मनवा,
    तड़पे मशीन बीचे उनकर परनवा.
    गीतकार खातिर कलम, कलाकार खातिर कला,
    एकरा समान दोसर कौन सुख होई भला ?
    अँसुवन में बहे रोज सपना नयनवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    हमरा भीतर के कलाकार के मुआवऽताटे,
    हमरा भीतर के गीतकार के सुतावऽताटे.
    जाने कौना कीमत पे पइसा बनावऽताटे,
    पापी पेट हमरा से हाय का करावऽताटे.
    तड़पिला रात दिन कवना रे जमनवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    तोहरा से कहतानी साँचो ए इयरवा,
    काहे दूना लागत नईखे इचिको जियरवा.
    हमरा के काटे दउड़े सोना के पिंजरवा,
    मनवा के खींचऽताटे माई के अँचरवा.
    लौट चलीं देश अपना कवनो रे बहनवा से,
    अइलीं फिरंगिया के गांवे हो संघतिया.

    -Manoj Bhawuk
    www.manojbhawuk.com

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  2. इस कविता में Nostalgic स्वर मुखरित हुए हैं। वतनपरस्ती के साथ-साथ आपका घर,परिवार, मित्र,आदि को याद करना एक नितांत सहज मानवीय वृत्ति है! आपके सुन्दर व्यक्तित्व की छाप भी इस रचना में देखी जा सकती है।

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