My expression in words and photography

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

कविताएँ

ईद
रोज होती है यहाँ
शब से सहर
मगर तुम कहीं
नहीं आते नज़र.

जिस दिन भी
तुम्हारी दीद होगी
अपनी तो उसी दिन
ईद होगी.

चांद देखकर
होगी पूरी मुराद
मेरी ओर से
ईद की मुबारकबाद !

खुदा करे आपकी
हर रोज ईद हो
मुमकिन है मुझे भी
अब तुम्हारी दीद हो !

एक चांद मेरे सामने
और एक आसमां में होगा
कारवाँ खुशियों का फिर
हमारे दरमियां होगा.

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