दिलों को जीतो
समझ नहीं आता
कि क्यूं बोलते हैं
सारे जहां के लोग
एक ही भाषा में
क्या इसलिए कि
झूठ और कपट की जुबाँ
सब जगह एक समान है.
क्यूं डरता है मानव
मानव से
क्या इसलिए कि मानव
मानव नहीं
दानव बन गया है.
क्यूं भूखे मरते हैं लोग आज भी
इसलिए कि कुछ लोगों की भूख
बहुत अधिक बढ़ गई है.
क्यूं झगड़ते हैं मेरे देश के लोग
इसलिए कि सब अपने अपने
स्वार्थ में अंधे हो गए हैं.
क्यूं लड़ते हैं दो देश आपस में
क्या इसलिए कि वो चाहते हैं
सारे जहां में उनका राज हो.
आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला
खून बहेगा कब तक मानवता का
जब कोई नहीं बचेगा इस युद्ध में
तो कौन जीतेगा किसको
और राज करेगा कौन
किस पर ?
जीतना ही है तो दिलों को जीतो
राज करो केवल दिलों पर
दुनिया पर नहीं
दुनिया पर राज करने की चाहत में
न जाने कितने लोग
उठ गए हैं इस दुनिया से.
जीतना ही है तो दिलों को जीतो
जवाब देंहटाएंराज करो केवल दिलों पर
दुनिया पर नहीं
दुनिया पर राज करने की चाहत में
न जाने कितने लोग
उठ गए हैं इस दुनिया से!
एक अत्यन्त आवश्यक एवं सार्थक संदेश देकर गयी है यह कविता!
काश... यह समाज और यह दुनिया कुछ सीख पाती कवि की इस वाणी से!
बहुत विचारणीय प्रश्न भी खड़े किये हैं आपने...बधाई!
जीतना है तो दिलों को जीतो
जवाब देंहटाएंवाह...क्या गहरी और सच्ची बात कही है,
आपके चिंतन को नमन।
आप जैसे गुणीजनों को मेरी यह मामूली कविता भा गयी ...यह मेरा सौभाग्य ही हो सकता है ...योग्यता कतई नहीं. आशा है कि आप सब का स्नेह और आशीर्वाद मुझे इसी प्रकार मिलता रहेगा. अश्विनी कुमार रॉय
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