My expression in words and photography

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

एक कविता

सब का सपना
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है
जब होगा सब के पास
रोटी कपडा और मकान
जियो और जीने दो पर
नहीं उठेगा सवाल
जैसा अधिकार होगा
वैसा ही कर्तव्य अपना है
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है

जब ना लड़ेगा कोई
धर्म या जाति के नाम पर
होगा आदर मानवता का
समानता के आधार पर
वसुधैव कुटुम्बकम की
उक्ति को साकार करना है
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है

बंटेगी जब नहीं धरती
अलग देशों के नाम से
बनेंगे नागरिक सारे
धरा के अपने आप से
समूची दुनिया को एक
शांतिप्रिय स्थल बनना है
यह मेरा ही नहीं
हम सब का सपना है

2 टिप्‍पणियां:

  1. अश्विनी जी,
    काश आपका यह सपना सच हो जाय ! बहुत ही सुन्दर विचारों को आपने गूंथा है !
    बधाई हो !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  2. जब ना लड़ेगा कोई
    धर्म या जाति के नाम पर
    होगा आदर मानवता का
    समानता के आधार पर
    वसुधैव कुटुम्बकम की
    उक्ति को साकार करना है
    यह मेरा ही नहीं
    हम सब का सपना है

    aapka sapna sakaar ho,dua hai

    जवाब देंहटाएं