My expression in words and photography

बुधवार, 26 नवंबर 2014

हमारी साख में गिरावट क्यों?

लोग अक्सर पूछते हैं कि विदेशों तथा भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था में मूलभूत अंतर क्या है? किसी जमाने में हमारी व्यवस्था सभी पश्चिमी देशों से बेहतर होती थी परन्तु अब हमने अपनी सारी ‘साख’ ही गंवा दी है. उस समय हमारे देश में आर्थिक लेन-देन के समय किसी लिखत-पढ़त का कोई चलन नहीं था परन्तु आजकल लोग लिखे हुए को भी आसानी से नकारने लगे हैं. लोग बैंकों से ऋण लेकर चुकाने से मना कर देते हैं. हमारे नेता वोट मांगने के लिए जो भी वायदा करते हैं, उसे पूरा नहीं करते. सम्भव है कुछ नेताओं की साख अच्छी हो, परन्तु अधिकतर नेताओं द्वारा अपनी ‘साख’ गंवा देने से लोग इन पर सहज विश्वास नहीं करते.
‘साख’ की आवश्यकता केवल नेता और जनता तक ही सीमित नहीं है. अगर मां-बाप भी अपने बच्चों से किए गए वायदे पूरे न कर सकें तो इन्हें कोई अधिकार नहीं है कि वे उनको झूठे सपने दिखाएँ. कई बार इस तरह की प्रवृति से बच्चे बिगड़ जाते हैं तथा उन्हें दोबारा पटरी पर लाना वास्तव में बड़ा कठिन होता है. आप रेल की टिकट खरीद कर नियत समय पर स्टेशन तो पहुँच जाते हैं लेकिन वहाँ जा कर मालूम होता है कि गाड़ी के आने का समय बदल गया है. परिणामस्वरूप आपको भारी परेशानी झेलनी पड़ती है. भारतवर्ष में बसों, रेलों, जहाज़ों का आवागमन प्रायः सही समय पर नहीं होता. इस दुर्व्यवस्था के चलते हमारे यहाँ यातायात प्रणाली को अत्यंत संदेह की दृष्टि से देखा जाता है. लोग अपने गंतव्य स्थल तक पहुँचने के लिए समय से काफी पहले ही घर से निकल जाते हैं. जाहिर है यह सब यातायात व्यवस्था के ‘साख’ खो देने से ही हुआ है.
अगर हम पूंजी बाज़ार की बात करें तो लोग यहाँ अपना रुपया ऐसी कंपनियों में निवेश करते हैं जिनका पुराना रिकोर्ड अच्छा हो. कुछ कंपनियां प्राइमरी मार्केट से रूपए की उगाही तो कर लेती हैं परन्तु शीघ्र ही ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे गधे के सिर से सींग! ऐसा हमारे तंत्र में कानूनी ढील के कारण ही होता है. आजकल निवेशकों के हित को ध्यान में रखते हुए ‘सेबी’ अर्थात भारतीय प्रतिभूति एक्सचेंज बोर्ड का गठन किया गया है. लेकिन हमारी कुछ कंपनियों के मालिक तो ऐसे हैं कि तू डाल-डाल, मैं पात पात. इन्हें इस व्यवस्था में भी कुछ खामियों का पता चल जाता है और ये किसी न किसी तरह जनता का धन लूटने में सफल हो ही जाते हैं. यद्यपि इस प्रकार की लूट-मार बहुत कम कंपनियां ही करती हैं परन्तु इसके कारण समूचे शेयर बाज़ार की ‘साख’ को बट्टा लगता है. क्या भविष्य में कोई शेयरधारक पूंजी बाज़ार का रुख कर पाएगा? कदापि नहीं. आज हमारे शेयर बाज़ार की विश्वसनीयता लगभग समाप्त हो चुकी है. कम से कम छोटे निवेशक तो इसके आसपास भी नहीं फटकते. किसी समय लोग इसमें निवेश करने के लिए हरदम तत्पर रहते थे परन्तु तथाकथित बे-इमान उद्यमियों ने इसकी साख को चौपट कर दिया है.
आजकल हमारी करेंसी ‘रूपए’ पर भारी अंतर्राष्ट्रीय दबाव है. इसका मुख्य कारण है सरकार द्वारा लिया गया ऋण. आज भारतीय आयात भी निर्यात की तुलना में बहुत अधिक है. इस वजह से भी हमारी मुद्रा पर दबाव बना रहता है. हमें दूसरे देशों से माल खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान करना होता है. अतः डॉलर का मूल्य रूपए की तुलना में कहीं अधिक बढ़ने लगा है. अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से प्राप्त ऋणों की वापसी भी डॉलरों में होने से हमारी ऋण अदायगी प्रभावित होती है. किसी भी देश को मिलने वाला ऋण उस देश की अंतर्राष्ट्रीय ‘साख’ पर निर्भर करता है. ‘साख’ का मूल्यांकन कई विदेशी रेटिंग एजेंसियों द्वारा किया जाता है. किसी भी देश की ‘साख’ वहाँ की राजनैतिक तथा आर्थिक व्यवस्था पर निर्भर करती है. संक्षेप में कहा जा सकता है कि हमारी ‘साख’ व्यक्तिगत स्तर से लेकर गली मोहल्ले, शहर, राज्य, देश व अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक मायने रखती है. अगर हमारी ‘साख’ अच्छी न हो तो कोई भी बैंक हमें ऋण नहीं देगा.

हमारी हर रोज की खरीद-फरोख्त जो क्रेडिट कार्ड से होती है, वह भी ‘साख’ से ही नियंत्रित होती है. जो लोग समय से अपने कार्ड की राशि अदा कर देते हैं उनकी खरीद सीमा बैंक द्वारा बढ़ा दी जाती है. इसी तरह वाहन एवं गृह निर्माण हेतु मिलने वाले ऋणों में भी किसी व्यक्ति की ‘साख’ को ही देखा जाता है. अगर हमारे देश में कोई एक व्यक्ति अपराध करता है तो इसकी छवि शहर से लेकर राज्य के स्तर तक प्रभावित होती है. किसी भी राज्य में संगठित अपराधियों के गिरोह होने से पूरे राज्य की बदनामी होती है. इसी प्रकार इधर-उधर गंदगी फैलाने से हमारे देश में आने वाले पर्यटकों की ‘राय’ कभी अच्छी नहीं हो सकती. गलती कुछ लोग ही करते हैं जबकि ‘साख’ पूरे देश की प्रभावित होती है. क्या आप चाहेंगे कि हमारी ‘साख’ कम हो? हम अपने देश की ‘साख’ बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं? जाहिर है हमें जितना लगाव अपनी ‘साख’ से है उतना ही लगाव देश की ‘साख’ से भी होगा. तो आइए, हम सब कुछ ऐसे काम करें कि हमारी तथा हमारे देश की ‘साख’ को कोई बट्टा न लगे!

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