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शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

महाराष्ट्र का महासंग्राम!

महाराष्ट्र विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत न मिलने के कारण बड़ी विचित्र परिस्थितियाँ बनती जा रही हैं. जहां शिवसेना ने बी.जे.पी. का विरोध करने का मन बनाया है, वहाँ एन.सी.पी. ने हर हाल में बी.जे.पी. को बिना शर्त समर्थन देने की बात कही है. यह अत्यंत चिंता का विषय है कि हमारे दल राजनीति से ऊपर उठ कर लोक भलाई के विषय में नहीं सोचते. अगर किसी दल को बहुमत न मिले तो दोबारा चुनाव करवाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रहता. आजकल बार-बार चुनाव करवाने से जनता को महँगाई की मार पड़ती है. सरकार जो रुपया चुनावों पर खर्च करती है वह भी जनता की गाढ़ी कमाई से ही आता है. ऐसे में मध्यावधि चुनावों से हर हाल में बचना चाहिए.
कुछ दल अपने राजनैतिक अहम के कारण एक दूसरे का विरोध करते हैं जो किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता. हालांकि बी.जे.पी. ने एन. सी.पी. से कोई समर्थन नहीं माँगा, फिर भी उन्होंने राज्य के हित में वर्तमान सरकार को बिना शर्त अपना समर्थन देने का फैसला किया है जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए. कुछ दलों को इस फैसले पर सख्त एतराज़ है क्योंकि चुनाव से पहले बी.जे.पी. और एन.सी.पी. एक दूसरे के घोर विरोधी रहे हैं. ज्ञातव्य है कि शिवसेना और बी.जे.पी. भी तो एक दूसरे के विरोध में अलग-अलग चुनाव लड़े थे, फिर इन दोनों का मेल भी कैसे पवित्र हो सकता है? इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है.
हमारे विधायक केवल सत्ता की राजनीति करते हैं. जब शिवसेना को उनकी इच्छानुसार मंत्रालय नहीं मिल पाए तो उनका विरोध मुखर हो कर सामने आ गया. शिवसेना को एन.सी.पी. द्वारा बी.जे.पी. को समर्थन मिलने पर भी सख्त एतराज़ है क्योंकि इसी कारण उनका बी.जे.पी. से गठजोड़ नहीं हो पाया. आजकल की दूषित राजनीति को स्वच्छ करने के लिए सरकार को एक नए संविधान संशोधन पर विचार करना चाहिए जिसके अनुसार किसी दल या गठजोड़ को बहुमत न मिले तो राज्यपाल सबसे बड़े दल या गठजोड़ के नेता को सरकार बनाने के लिए कहे, चाहे यह अल्पमत सरकार ही क्यों न हो! हाँ, कोई भी क़ानून तभी पास होगा जब प्रांतीय विधायक बहुमत से इसका समर्थन करें.

हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली भी राजनैतिक विद्वेष का शिकार हुई है. यहाँ के लोगों ने चुनावों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया, फिर भी वहाँ कोई सरकार नहीं बन पाई. जो सरकार बनी, उसने कतिपय ओछी दलीलें दे कर कुछ दिन बाद इस्तीफा दे दिया. अब यहाँ दोबारा चुनाव होंगे. यह विचारणीय है कि अगर फिर भी किसी दल को बहुमत न मिला तो क्या होगा? आखिर एक अल्पमत सरकार बनने देने में क्या हर्ज है, बशर्ते इसे जनता द्वारा चुना गया हो!  

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