My expression in words and photography

गुरुवार, 20 मार्च 2014

स्वार्थी संसार- एक लघु कथा


वह फर्श पर लेटा हुआ था, न जाने उसके चारों ओर इतनी भीड़ क्यों जमा थी? कोई कह रहा था बड़ा भला आदमी था, तो कोई कह रहा था कि परिवार को ऐसे ही बीच मंझधार में छोड़ गया. किसी ने कहा कि इनके रिश्तेदारों आदि को खबर कर दो ताकि अंतिम संस्कार समय से हो सके! सभी लोग अपने-अपने ढंग से बात कह रहे थे. तभी उसकी पत्नी और बच्चे रोते-बिलखते हुए उधर आए और वातावरण में मातम छा गया. पत्नी ने कहा, “गुडिया बड़ी हो रही है, अब इसकी शादी कौन करेगा?” बेटे को भी अपनी फिक्र सता रही थी. वह रोते-रोते कह रहा था कि अब मैं विदेश जा कर अपनी शिक्षा कैसे जारी रख पाऊँगा? उसकी पत्नी के परिजनों को अपनी बेटी की भावी जिंदगी की फिक्र सता रही थी. उनकी चिंता थी कि अब इस घर का खर्च कौन उठाएगा? वह सबकी बातें सुन पा रहा था और चिंतामग्न था कि मैं तो सोचता था कि मेरे परिवार को मुझसे बेहद प्यार है, लेकिन यहाँ तो माजरा ही कुछ अलग था. सब अपने-अपने सुखों के लिए रो रहे थे! परिवार के किसी भी सदस्य को उससे वास्तविक प्रेम नहीं था.
उसने जिस परिवार के भरण-पोषण के लिए जीवन-भर मेहनत की थी, वह अपने सुखों को ही याद कर रहा था. उन सब को केवल यह चिंता थी कि अब हमें सुख कहाँ से व कैसे प्राप्त होगा? संसार की सारी वास्तविकता उसके सामने आ चुकी थी. इतने में उसने करवट बदली और वह उठ बैठा. सम्पूर्ण घटनाक्रम को याद करते ही उसने स्वयं से कहा...तो ये सपना था!

सपने में उसे जीवन की वास्तविकता का कटु अनुभव हो गया था. वह मन ही मन सोचने लगा कि अच्छा होता अगर ईश्वर उसे सचमुच ही अपने पास बुला लेता. कम से कम इस स्वार्थी संसार से तो उसको पीछा छूट जाता! –डा. अश्विनी रॉय, एन. डी. आर. आई. करनाल.

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