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सोमवार, 24 सितंबर 2012

“रूपया पेड़ों पर नहीं उगता”


“रूपया पेड़ों पर नहीं उगता” यह शास्वत सत्य है. परन्तु न जाने क्यूं बार-बार यही प्रश्न मस्तिष्क को अंदर तक झकझोर रहा है कि ऐसा क्यूं नहीं होता. काश रुपया पेड़ों पर उगता! कम से कम इनके दोहन के लिए भी सरकार द्वारा बोली वाली प्रक्रिया अपनाई जाती. अगर बोली की बजाय ये पेड़ किसी रसूखदार व्यक्ति या कंपनी को आबंटित होते तो इस पर भी शीर्ष ऑडिट संस्थाएं अपनी नुक्ताचीनी करती. सरकार की देश भर में निंदा होती. न जाने कितने जुलूस व मोर्चों का आयोजन होता. देश भर की राजनीति आखिर यूं ही तो नहीं गहराती है.

अगर देखा जाए तो पेड़ भी तो अपने लिए लवण, खनिज तथा जल भूमिगत स्रोतों से ही प्राप्त करते हैं. भूमिगत खनिज सम्पदा राष्ट्रीय सम्पति है, जिसका दोहन सरकार की आज्ञा के बिना हो ही नहीं सकता. वैसे भी आजकल जल को राष्ट्रीय सम्पति घोषित करने की मांग उठने लगी है. अगर रूपए पेड़ों पर ही उगते तो इनके बीजों का वितरण सरकार ही करती. इसके लिए आवश्यक उर्वरकों का आयात विदेशों से किया जाता. आखिर रुपये छापने के लिए भी तो बेहतरीन आयातित कागज़ की आवश्यकता जो पड़ती है! बढ़िया रुपयों की पैदावार के लिए हर वस्तु उच्च गुणवत्ता की ही लगाई जाती है.

‘रुपये के पेड़ों’ की खेती नियंत्रित करने के लिए एक मलाईदार मंत्रालय भी स्थापित किया जाता. इस मंत्रालय को पाने के लिए नेताओं में अच्छी खासी होड़ लग जाती. बढ़िया नस्ल के ‘कुबेर’ पेड़ों के बीज भी विदेशों से मंगवाए जाते. इनके बीजों के चुनाव के लिए हमारे मंत्री सरकारी खर्चे पर विदेशों का दौरा करते. वहाँ से ‘रूपए’ की खेती के लिए आधुनिक तकनीकी हमारे देश में लाई जाती. हो सकता है कि ‘रुपयों की खेती’ के लिए अन्य देशों के साथ संयुक्त उपक्रम भी स्थापित किए जाते. कुल मिलाकर यह निश्चित है कि इस खेती पर हमारे बज़ट का एक बहुत बड़ा भाग व्यय किया जाता.

‘रूपए के पेड़ों’ की खेती के लिए लाइसेंस लेना आवश्यक हो जाता. इसकी फसल के लिए समर्थन मूल्य घोषित करने की तो आवश्यकता ही न रहती. हो सकता है देश में खाद्यान्नों के दाम बहुत अधिक बढ़ जाते. क्योंकि रुपये के पेड़ उगाने वाले आखिर अनाज या सब्जियां क्यों उगाएंगे! अगर ‘रूपए’ की भरपूर खेती होने लगे तो बैंकों का कामकाज बढ़ जाता. किसान क़र्ज़ लेने की बजाय क़र्ज़ देने लगते. किसान सरकार से कोई माफी की मांग नहीं करते, उल्टा सरकार किसानों को अपना क़र्ज़ माफ करने के लिए कहती रहती. ‘कुबेर’ पेड़ों की खेती का अर्थ यह नहीं कि लोग गरीबी रेखा के नीचे नहीं हो सकते. गरीबी रेखा तो अवश्य रहेगी परन्तु काफी अधिक रूपए रखने वाले लोग भी इस रेखा के नीचे आ जाते. अर्थात रूपए अगर पेड़ों पर लगने लगें तो भी कुछ लोग गरीबी रेखा के नीचे रहेंगे ही!

अगर रूपया पेड़ों पर लगने लगे तो लोग फिर भी इन्कम टैक्स चुकाने में दकियानूसी दिखाएंगे. अपनी पैदावार कम बताएंगे. रूपया बैंक में डालने की बजाए स्विस बैंकों में रखेगे. आजकल एक हज़ार से कुछ लाख रुपयों की रिश्वत से फिर भी कोई काम हो जाता है. रूपया पेड़ों पर लगने के कारण संभव है कि अपना कार्य सिद्ध करने के लिए शायद करोड़ रुपयों की रिश्वत भी कम पड़ने लगे. लोग अस्पताल में अपने मरीजों के लिए दवाई तो खरीद पाएंगे मगर हो सकता है जिंदगी पहले से अधिक सस्ती हो जाए. संभवतः सब लोग गाड़ियों में घूमने लगे और सड़क पर यातायात नियंत्रण की समस्या पैदा हो जाए. दुर्घटनाएं बढ़ने से मनुष्य का जीवन नर्क बन सकता है.

पेड़ों पर रूपए उगने से इच्छाएं तो बढ़ती हैं परन्तु संतोष की प्राप्ति नहीं होती. हे ईश्वर! तेरा लाख लाख शुक्र है कि तूने रुपयों को पेड़ों पर नही उगाया. अगर रूपए पेड़ों पर उगते तो शायद लोग तुझे भी खरीद लेते. दुनिया से तेरा डर ही समाप्त हो जाता. कम से कम लोग अब यह तो स्वीकार करते ही हैं कि रूपया सब कुछ नही होता. फिर भी हम आज इस सदमे से दो-चार हैं कि रूपया पेड़ों पर नहीं उगता. इसके पीछे भी एक दर्द छुपा है. एक कड़वाहट है, टीज़ सी उठती है. एक शिकायत है कि रूपया पेड़ों पर क्यों नहीं लगता.

कुछ ऐसे बुद्धिमान लोग भी हैं जो रूपया शायद अपनी हथेली पर उगाना बखूबी जानते हैं. यह बात अलग है कि ऐसा करने के लिए आपको अत्यंत पोषक राजनीति-युक्त मौसम के साथ साथ कोयले की खाद, रिश्वत का पानी, टू जी के विटामिन, और ढेरों प्रकार की अन्य आवश्यक सामग्री की ज़रूरत पड़ेगी जो शायद बहुत कम लोगों को ही मयस्सर होती है. परन्तु जिनके पास ये सामग्री है वही लोग बार बार यह बात कहते हैं कि “रूपया पेड़ों पर नहीं उगता”.

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