My expression in words and photography

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

बाल-वाटिका


कक्षा में मेरा प्रथम दिन

जब मैं प्रतिदिन अपने घर की छत से स्कूल जाने वाले बच्चों को देखता था तो मेरा मन भी उनके साथ चलने को होता था. मेरे बार बार कहने पर मुझे सब समझा देते कि अभी मैं छोटा बच्चा हूँ. मैं तो बस चुप करके ही रह जाता था. मैं सोचता था कि स्कूल में बच्चे कैसे पढते होंगे? वहाँ पर बड़े मैदान में खेलने का तो अलग ही मज़ा आता होगा! सुना था कि अध्यापक भी बच्चों को बहुत प्यार करते होंगे. ऐसे ही ढेरों विचार मेरे मन में आते परन्तु मैं कुछ भी नहीं कर सकता था.

आखिर एक दिन मुझे बताया गया कि मैं अब बड़ा हो गया हूँ. मेरी आयु स्कूल में प्रवेश योग्य हो गई थी. मैं अपनी मम्मी तथा पापा जी के साथ कार द्वारा स्कूल पहुँचा. मन में पहली बार स्कूल जाने की खुशी के साथ साथ एक अनजाना डर भी बना हुआ था.  मुझे स्कूल टीचर ने प्रवेश की अनुमति दे दी थी. पापाजी मुझे कक्षा में छोड़ कर जैसे ही जाने लगे मुझे एक दम रोना आ गया. मैं अपने मम्मी पापा से अलग नहीं होना चाहता था. मम्मी जी ने मुझे याद करवाया कि मैं कैसे उन्हें बार-बार स्कूल जाने के लिए कहता था. अब सारा मामला बदल गया था और मुझे अचानक अकेलापन खलने लगा था. तभी स्कूल टीचर ने मुझे अपने पास बुला लिया तथा मम्मी व पापाजी को बाय बाय करने को कहा. मैंने डर के मारे ऐसा ही किया.

टीचर ने मुझे खाने को चोकलेट दी तथा कक्षा में अपने सामने वाली कुर्सी पर बिठा दिया. सभी बच्चों से मेरा परिचय करवाया. मुझे यह सब बड़ा अच्छा लग रहा था तथा अब दो-तीन बच्चों से मेरी अच्छी दोस्ती भी हो गई थी. टीचर ने बड़े प्यार से हमें अंग्रेज़ी व हिन्दी पढाई व हमें लिखने को कहा. दोपहर की छुट्टी होते ही घंटी बज गई. मैंने अपने दो दोस्तों के साथ बैठ कर खाना खाया. इसके बाद हम सब मैदान में खेलने चले गए. खेलने के बाद जैसे ही घंटी बजी हम दुबारा कक्षा में आ गए. अब हमें पढाने के लिए दूसरी टीचर आ गयी थी. हमें बहुत अच्छी बातें बतायी गई. मैं सोच रहा था कि आज का दिन सचमुच बहुत ही अच्छा है.  आज मैंने पहली बार कक्षा में पढ़ाई की तथा दो अच्छे दोस्त भी मिले.  मुझे अपने टीचरों से बहुत अच्छी अच्छी बातें भी सीखने को मिली. जाते समय टीचर ने हमें होम वर्क भी करने को दिया.
मैं कक्षा में बिताए अपने पहले दिन को कभी नहीं भूल पाऊँगा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें