My expression in words and photography

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

तीन क्षणिकाएं

यथार्थ
दुनिया सिंधु महान्
मानव बूँद समान.

आम
आम
आजकल नहीं रहा आम
क्योंकि
खास लोग ही
अब खाते हैं
आम.

कल और आज
कल तक
माँ-बाप ही थे
दौलत
आज
दौलत हो गई है
माँ-बाप.

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