My expression in words and photography

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

‘अपराधमुक्त’ भारत की संकल्पना

देश में अपराध का हर रोज बढ़ता हुआ ग्राफ नई ऊंचाइयां छूने लगा है. दिल्ली में बलात्कार की एक और घटना ने साबित कर दिया है कि देश में महिलाएं अब भी सुरक्षित नहीं है. हर नई घटना के बाद मीडिया का बेसुरा प्रलाप, राजनीतिज्ञों द्वारा घटना की भर्त्सना, पुलिस द्वारा तेज़ी से जांच करने के आश्वासन और सरकार की नित्य होने वाली छीछालेदर देखकर सभी लोग परेशाँ हो रहे हैं. आखिर इस तरह की घटनाओं पर लगाम कैसे कसी जाए? अगर देखा जाए तो इन घटनाओं की पुनरावृत्ति के लिए हमारा समूचा तंत्र एवं समाज दोनों ही जिम्मेवार हैं. इसकी शुरुआत घर से ही हो जाती है. कोई भी व्यक्ति अपराधी क्यों बनता है? या तो उसके घर की पृष्ठ-भूमि अपराधिक होती है या फिर उसके परिवार में कोई न कोई व्यक्ति पहले से अपराधी होता है. प्रदूषित वातावरण में पलने वाले बच्चे घर की अपराधिक पृष्ठ-भूमि से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते. हमारे परिवार एवं समाज दोनों की यह जिम्मेवारी है कि अपराधों को संरक्षण देने की बजाय हम इन्हें उचित मंच तक ले जाएँ ताकि इन्हें जड़ से ही पनपने का अवसर न मिले.
      हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं संस्कार अपने परिवार के बाद स्कूल से मिलते हैं. यदि स्कूलों में अध्यापक अपराधिक पृष्ठभूमि के होंगे तो आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि देश का क्या होगा? कुछ लोग स्कूलों में अध्यापक का पद प्राप्त करने के लिए फर्जी सर्टिफिकेट बनवाने से लेकर तरह-तरह की हेराफेरियाँ करते हैं. ये सब देश में फ़ैल रहे भ्रष्टाचार से ही होता है. अध्यापकों की चरित्र जांच या ‘वेरिफिकेशन’ अक्सर पुलिस द्वारा रिश्वत लेकर की जाती है. जब लोग रिश्वत देकर अपने काम करवाने लगेंगे तो गुणवत्ता से तो समझौता करना ही पडेगा. इसी तरह पुलिस में होने वाली भर्ती भी भ्रष्टाचार के आशीर्वाद से होती है. हमारे समाज की जड़ें खोखली करने में भ्रष्टाचार की भूमिका सर्वाधिक है. हैरानी की बात है कि जब ड्राईविंग लाइसेन्स बनवाना हो तो कुशल नेत्र दृष्टि के साथ-साथ मनुष्य का स्वस्थ होना भी जरूरी है. जब कोई व्यक्ति अपराधिक छवि का हो, तो उसे किसी भी हालत में  ड्राईविंग लाइसेन्स नहीं मिलना चाहिए क्योंकि वह इसका दुरुपयोग कर सकता है. परन्तु वास्तविकता एक दम अलग है. आजकल लोग रिश्वत देते हैं तथा ड्राईविंग लाइसेन्स अपने आप बन कर आपके घर चला आता है. जब अपराधों को रोकने के लिए बनी पुलिस ही सभी अपराधों को न्यौता देने लगे तो आप कहाँ जाएंगे?
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि हम आज़ाद तो हो गए किन्तु आजादी के इतने साल बाद भी हमारे देश में क़ानून का शासन नहीं है. लोग अपराध करके बे-खौफ घूमते रहते हैं. हम केवल सरकार को बुरा-भला कह कर अपना पल्ला झाड लेते हैं. परिणाम फिर वही.... जस का तस! हाल ही में घटी ‘रेप’ की घटना के अपराधी को पकड़ने से मालूम हुआ है कि उस व्यक्ति पर पहले से ही बलात्कार के आरोप में मुकद्दमा चल रहा है जिसमें वह अभी बरी नहीं हुआ था. यह उतना ही आश्चर्यजनक है कि इस प्रकार के अपराध करने वाला व्यक्ति ड्राईविंग लाइसेन्स कैसे बनवाने में सफल हो गया? एक कंपनी को ‘कैब-सर्विस’ के व्यवसाय में कोताही बरतने का दोष दिया जा सकता है परन्तु क्या यह हमारे तंत्र का दोष नहीं है कि अनधिकृत व्यक्ति इस देश में किस प्रकार कारें व टेक्सियाँ चला सकते हैं? कुछ लोगों का मानना है कि महिला ड्राइवरों को टैक्सी के ड्राईविंग लाइसेन्स दिए जाएँ तो अच्छा रहेगा. परन्तु इस बात की क्या गारंटी है कि टैक्सियों में सफर करने वाले पुरुष या महिलाएं कोई अपराध नहीं करेंगे?
हमें अपराध के मामलों को सख्ती से निपटने की आवश्यकता है. आजकल अपराधियों को या तो पकड़ा ही नहीं जाता, या पकड़ने में बहुत लंबा समय लगता है जिससे घटना के सभी साक्ष्य कमज़ोर पड़ जाते हैं. कई बार पुलिस घटना की एफ.आई.आर. दर्ज करने में आना-कानी करती है. हमारा क़ानून बहुत कमज़ोर है जो तरह-तरह की बैसाखियों के सहारे चलता है. ये बैसाखियाँ भ्रष्टाचार के रस से सराबोर हैं. कभी वकीलों की फीस, कभी राजनैतिक हस्तक्षेप, तो कभी गवाहों की बेरुखी अपराधियों को सजा दिलाने में संकोच करती है. न्याय मिलने में देरी होने के कारण लोगों का हमारी न्याय व्यवस्था से ही विश्वास उठ गया है.

आज हमें अपने भीतर झांकना होगा. हम सब मिलकर इस तरह के अपराधों को अवश्य ही रोक सकते हैं. अपराधी हमारे परिवार, समाज, शहर तथा राज्यों में ही छुपे हुए हैं. हमें इनकी पहचान करके क़ानून के हवाले करना होगा. क़ानून से कोई बचने न पाए, इस पर सारे समाज की नज़र होनी चाहिए. हमारा कर्तव्य है कि हम सभी अपराधियों के प्रति अतिसंवेदनशील बनें तथा इन्हें पकडवाने में अपना अधिकाधिक योगदान दें. ‘अपराधमुक्त’ भारत की संकल्पना शायद हम सबके सहयोग से ही सम्भव हो सकती है. 

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