My expression in words and photography

शनिवार, 31 अगस्त 2013

गज़ल

वो सोने की तरह तोल रहा है
सोना नहीं प्याज तोल रहा है.
डॉलर के सामने सिसक रहा है
वो कहते हैं रूपया बोल रहा है.
गिरा है ये ओंधे मुंह फिर भी
रूपए पर हर दिल डोल रहा है.
लुटती है सरे-बाजार आजकल
अस्मत का नहीं मोल रहा है.
काला धन खामोश है लेकिन

देश के ये राज़ खोल रहा है.

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