My expression in words and photography

मंगलवार, 13 जनवरी 2015

कैसे खुदगर्ज़ हो?

मेरा किया तो फ़र्ज़ है
तुम्हारा किया एहसान
मुझे इस पर हर्ज है !
दोस्ती मेरी इबादत है
तुम्हारे लिए सियासत है
ये कैसी लियाकत है?
वायदे खूब करते हो
लेकिन वफ़ा नहीं करते
खुद को बा-वफ़ा कहते हो !
हमें अपने हाल पे छोड़ दो
हमारे बीच न कोई होड़ हो

गर दीवार है उसे तोड़ दो! -अश्विनी रॉय 'सहर'

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