इसलिए दिल परेशान है
हर तरफ इक बियाबान है.
अपने चेहरे, सजाए रहो
आइनों की ये दुकान है.
आदमी कह रहे हो जिसे
वो तो हिन्दू-मुसलमान है.
वो जो महफूज़ खुद ही नहीं
वो हमारा निगहबान है.
वो कभी खुद नहीं झाँकते
उनका अपना गिरेबान है.
तुम हो मालिक रियाया हैं हम
ये भी क्या वक्त की शान है.
-साभार, “रौशनी महकती है” श्री सत्य प्रकाश शर्मा के असरे कलम से.
आदमी कह रहे हो जिसे
जवाब देंहटाएंवह तो हिन्दू मुसलमान है
क्या बात है ...!!