नदी मिली जब सागर में
तो अपनी उपलब्धि पर
खूब लगी वह इतराने
पाकर विशाल आकार
वह लगी खुशी मनाने
तब सागर ने ये बात कही
“कहीं नेकट्य का यह मेरे
कोई दुरुपयोग तो नहीं?”
गुरु से पाकर ज्ञान शिष्य
मन ही मन था सोचता
बांटूगा मैं ज्ञान एक दिन
यूं सबको बिन मोल का
लेकिन गुरु ने सोच कर
अपने शिष्य से यूं कही
“कहीं नेकट्य का यह मेरे
कोई दुरुपयोग तो नहीं?”
सुन के साधु के प्रवचन
मन हो गया जब शांत
दान महिमा जागृत हुई
पाकर सत्संग का साथ
साधु को यह देख कर
तब कुछ ईर्ष्या होने लगी
“कहीं नेकट्य का यह मेरे
कोई दुरुपयोग तो नहीं?”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें