ये ज़िंदगी का मुकद्दर है क्या किया जाए
क़जा का वक्त मुक़र्रर है क्या किया जाए.
हर इक निगाह के अन्दर है क्या किया जाए
बहुत डरावना मंज़र है क्या किया जाए.
हसीन से भी हंसीतर हैं क्या किया जाए
तेरे ख़याल का पैकर है क्या किया जाए.
हर एक शख्स के दिल में है ख्वाहिशों का हुजूम
तलब सभी की बराबर है क्या किया जाए.
ये जान जिस्म से हो सकती है जुदा लेकिन
ये मेरी रूह के अन्दर है क्या किया जाए.
जो गीत दारो-रसन का न गा सका कोई
वो सिर्फ़ मेरी जुबां पर है क्या किया जाए.
वो जिसके नाम से मैं बदनाम हुआ था कभी
फिर उसका नाम ज़बां पर है क्या किया जाए.
वो जीस्त मैं जिसे सहरा समझ रहा था ‘ज़हीन’
मुसीबतों का समन्दर है क्या किया जाए.
असरे-कलम - श्री बुनियाद हुसैन ज़हीन बीकानेरी
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