मौसम-ए-बहार
है या नज़र का जादू
अब आप और भी खुशनुमां हो रहे हैं.
फज़ा में
हैं महक औ’ रौनाइयां
हर तरफ
गुल-ए-गुलज़ार हो रहे है.
चलो
भूल जाएँ हम कल की बातें
नए
जज़्बात हर घड़ी रौशन हो रहे हैं.
किसी
खिजाँ से अब डर नहीं लगता
अहले-गुलशन में नए फूल खिल रहे हैं.
शीराज़-ए-हयात टूटने को है ‘सहर’
फिर भी ये फूल हर सूं मुस्कुरा रहे हैं.
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