फूट डालो शासन करो
मानव – मानव को
लडाने की
जन – जीवन को
लहुलहान कर देने की
भाईचारे , प्रेम और शान्ति को
भंग करने की बात
किस धर्म ने
किस अवतार ने
कही है .
वास्तव में ये तो
‘फूट डालो शासन करो’
की नियति थी
जो चली थी 1947 से पहले
तब अंधापन हावी था
जन पर
इतने क्रूर और भयावह कि
बहु – बेटियों को
अपवित्र किया गया ,
जान – माल का
हरण किया गया .
मुस्लिम देशों में
शिया और सुन्नी
भारत में बौद्ध – वैष्णव ,
शैव – बौद्ध ,आर्यसमाजी ,
हिन्दू – सिक्ख झगड़े
होते रहे .
असली सफलता उन्हें
तब मिली
जब एक नया षड्यंत्र
हिन्दू –मुस्लिम फसाद
और यह इसलिए
ताकि वे
शासक बने रहे ,
खूनी , साम्प्रदायिक संघर्ष
वीभत्स आग बढती गई .
आज़ादी के बाद भी ...
विभाजन संघर्ष
घर – घर ,नगर – नगर
अमानवीयता का
खूनी परचम लहराया .
तब धर्मों और धर्मों को
आपस में लड़ाया
और अब
धर्म को लड़ा रहे है
कर्म से , धन से
संपत्ति से
तब शिया और सुन्नी थे
अब हर घर का
अपना – अपना मसलक,
अपना – अपना खलीफ़ा,
अपना – अपना मसीहा
जो धन के मारे
धर्म को मार रहे है
स्वयं मर रहे है
अपने भाइयों को
मार रहे है .
लोग मरते रहेंगे,
लूट , हत्या , बलात्कार
होते रहेंगे
जब तक अज्ञान है
अरे नादान !
ये तो वही
वही ‘फूट डालो शासन करो’
का सिद्धांत है, जो
हम और तुम को
दूर कर रहा है .
कब्रिस्तान
नहीं भूल सकता
तेरे उस फ़रेब को
जिसके कारण
अपने कंधो पे
लाशें लिये फिरता हूँ
कब्रिस्तान – दर – कब्रिस्तान .
अब इस बोझ से
थक गया हूँ ,
कर ऐसा फ़रेब कि
मेरी लाश भी
चल पड़े अपने मुकाम की ओर
ओरों के कंधों पर
कहीं ऐसा न हो कि
मेरी लाश पड़ी रहे
किसी सड़क पर ...
किसी कंधे की जरूरत की खातिर
या कब्रिस्तान की जगह की खातिर .
मानव – मानव को
लडाने की
जन – जीवन को
लहुलहान कर देने की
भाईचारे , प्रेम और शान्ति को
भंग करने की बात
किस धर्म ने
किस अवतार ने
कही है .
वास्तव में ये तो
‘फूट डालो शासन करो’
की नियति थी
जो चली थी 1947 से पहले
तब अंधापन हावी था
जन पर
इतने क्रूर और भयावह कि
बहु – बेटियों को
अपवित्र किया गया ,
जान – माल का
हरण किया गया .
मुस्लिम देशों में
शिया और सुन्नी
भारत में बौद्ध – वैष्णव ,
शैव – बौद्ध ,आर्यसमाजी ,
हिन्दू – सिक्ख झगड़े
होते रहे .
असली सफलता उन्हें
तब मिली
जब एक नया षड्यंत्र
हिन्दू –मुस्लिम फसाद
और यह इसलिए
ताकि वे
शासक बने रहे ,
खूनी , साम्प्रदायिक संघर्ष
वीभत्स आग बढती गई .
आज़ादी के बाद भी ...
विभाजन संघर्ष
घर – घर ,नगर – नगर
अमानवीयता का
खूनी परचम लहराया .
तब धर्मों और धर्मों को
आपस में लड़ाया
और अब
धर्म को लड़ा रहे है
कर्म से , धन से
संपत्ति से
तब शिया और सुन्नी थे
अब हर घर का
अपना – अपना मसलक,
अपना – अपना खलीफ़ा,
अपना – अपना मसीहा
जो धन के मारे
धर्म को मार रहे है
स्वयं मर रहे है
अपने भाइयों को
मार रहे है .
लोग मरते रहेंगे,
लूट , हत्या , बलात्कार
होते रहेंगे
जब तक अज्ञान है
अरे नादान !
ये तो वही
वही ‘फूट डालो शासन करो’
का सिद्धांत है, जो
हम और तुम को
दूर कर रहा है .
कब्रिस्तान
नहीं भूल सकता
तेरे उस फ़रेब को
जिसके कारण
अपने कंधो पे
लाशें लिये फिरता हूँ
कब्रिस्तान – दर – कब्रिस्तान .
अब इस बोझ से
थक गया हूँ ,
कर ऐसा फ़रेब कि
मेरी लाश भी
चल पड़े अपने मुकाम की ओर
ओरों के कंधों पर
कहीं ऐसा न हो कि
मेरी लाश पड़ी रहे
किसी सड़क पर ...
किसी कंधे की जरूरत की खातिर
या कब्रिस्तान की जगह की खातिर .
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