भारत एक विभिन्न धर्मों का देश है जहां सभी धर्मों के लोग
मिल-जुल कर ऐसे रह रहे हैं जैसे किसी गुलदस्ते में रंग-बिरंगे खुशबू और बिना खुशबू
वाले फूल एक साथ दिखाई देते हैं किन्तु एक दूसरे पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करते.
हालांकि धर्म आस्था से जुड़ा हुआ ऐसा मामला है जहां कोई तर्क-वितर्क काम नहीं आते
फिर भी कई बार ऎसी परिस्थितियाँ बनी हैं जब धार्मिक असहिष्णुता पर सवाल उठाने की
नौबत आई है. अभी हाल ही में हिन्दू महासभा के एक नेता को मुस्लिम धर्म के विषय में
आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर गिरफ्तार कर लिया गया था. वह आजकल जेल में है तथा उसके शीघ्र
छूटने की संभावना भी कम ही दिखाई देती है.
अभी लोग इस घटना को भूले ही नहीं थे कि टी.वी. पर कोमेडी
करने वाले एक व्यक्ति ने हरियाणा के डेरा धर्मावलम्बियों के गुरु का अशोभनीय मजाक
उड़ा दिया जिसे डेरा-प्रेमियों ने अत्यंत गंभीरता से लिया और कोमेडियन को गिरफ्तार
कर कानूनी कार्यवाही की माँग कर डाली. इस व्यक्ति को आनन-फानन में गिरफ्तार भी कर
लिया गया किन्तु कुछ लोगों के दबाव में छोड़ने की नौबत भी आ गई. ज्ञातव्य है कि
डेरा प्रमुख ने घटनाक्रम जानने के बाद इस कोमेडियन को तो माफ़ कर दिया किन्तु
मुस्लिम धर्म पर टिप्पणी करने वाले व्यक्ति के लिए फांसी की माँग की जा रही है.
सबसे बड़ा प्रश्न देश में असहिष्णुता को लेकर भी है. जब एम. एफ.
हुसैन ने हिंदू देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरें बना कर सबको चौंकाया था तो हिंदुओं
ने काफी हद तक अपनी परम्परागत सहिष्णुता का परिचय दिया था. वर्तमान परिस्थितियों
में भी कुछ वैसा ही देखने को मिल रहा है परन्तु लोगों को देश के क़ानून पर जैसे कोई
भरोसा ही नहीं रहा है. ये लोग अपनी मर्जी से किसी को मुजरिम करार देते हुए फांसी
पर लटका देना चाहते हैं. हमने पिछले दिनों और भी कई ऐसे घटनाक्रम देखे हैं जब कुछ
मुस्लिम नेताओं ने हिन्दू देवीदेवताओं पर अशोभनीय टिप्पणियाँ की थी परन्तु हिंदुओं
ने अपनी पारंपरिक सहिष्णुता दिखाते हुए मामले को तूल देना उचित नहीं समझा तथा सब
कुछ क़ानून पर छोड़ दिया गया.
अब सवाल ये नहीं है कि अगर कोई कोमेडीयन है तो उसे किसी की
भी खिल्ली उड़ाने का अधिकार मिल सकता है परन्तु नेता है तो उसे बख्शा ही न जाए! क्या
नेता किसी कलाकार से कम है? आखिर वह भी तो जनता पर अपना विशेष प्रभाव दिखाकर ही
वोटें हासिल करता है न! जो व्यक्ति इतना बड़ा कलाकार हो, उसे कोमेडीयन से कमतर
क्यों समझा जाए? हमारे ख्याल में तो सभी मामले एक जैसे दिखाई देते हैं. दूसरों के
धार्मिक मामले में नाहक हस्तक्षेप करने वाला हर एक व्यक्ति अपराधी की श्रेणी में
आता है चाहे वह कलाकार है या नहीं.
जब देश में ‘जुवेनाइल’ जस्टिस पर बहस चल रही थी तो सारा देश
‘जुवेनाइल’ को फांसी देने पर उतारू हो गया जबकि क़ानून में ‘जुवेनाइल’ को विशेष
अधिकार दिए गए थे! अब वही तर्क यहाँ भी लागू होने चाहिएं. क्या कोई व्यक्ति अपने आपको
कलाकार बता कर क़ानून से बच सकता है? अगर नहीं तो इस कोमेडीयन को गिरफ्तार करने पर
सारा बोलीवुड एक जुट कैसे हो गया? जब कोई
व्यक्ति दूसरों के धर्म पर अशोभनीय टिप्पणी करे तो सजा के मापदंड अलग-अलग नहीं हो
सकते. सजा तो क़ानून ही तय करेगा. धर्म चाहे कोई भी हो सजा देश के क़ानून के अनुसार
ही होनी चाहिए.
उपर्युक्त विवादित मामलों में धरने-प्रदर्शन व जलूस निकाल
कर कुछ नेता अपनी राजनैतिक रोटियां तो सेक सकते हैं किन्तु समस्या का उचित समाधान
नहीं जुटा सकते. यह हम सब का कर्तव्य है कि हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर सभी
धर्मों के लोगों को उनकी इच्छानुसार आचरण करने दें, इसी में हम सब की भलाई है! धर्म
का मकसद लोगों को जोड़ना है न कि नफरत पैदा करना. देश के जिम्मेवार नागरिकों का यह फ़र्ज़
है कि वे अपने धर्म के दायरे में रहते हुए देश के क़ानून का पालन करें क्योंकि धर्म
तो व्यक्ति के घर तक सीमित होता है परन्तु देश के क़ानून पर चलना राष्ट्र धर्म की
श्रेणी में आता है, जो सबसे ऊपर होना चाहिए.
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