वो जो एक
नाम को सौ सुख कहता है
आँख का अंधा, खुद को नैनसुख कहता
है.
बरस गुजर गए, उसके चेहरे पे
हँसी देखे
लेकिन वो खुद को हंसमुख कहता
है.
सब कुछ है मगर सकूं नहीं दिल को
देखो उसे वो खुद को मनसुख कहता
है.
जिंदगी में न कभी चल पाया ठीक
से
फिर भी खुद को तनसुख कहता है.
गर मिले सकूं तन और मन से ‘सहर’
तो हर कोई इसे परमसुख कहता है.
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