आजकल केन्द्रीय
विद्यालयों में संस्कृत को तीसरी भाषा के रूप में पढाने पर एक नया विवाद छिड़ गया
है. अभी कुछ समय पहले तक इसके स्थान पर जर्मन भाषा पढ़ाई जाती थी. यह अत्यंत
आश्चर्यजनक बात है कि हमारे देश में इतनी अधिक संख्या में समृद्ध भाषाएँ होते हुए
भी हम विदेशी भाषाओं के प्रति अपने मोह को दूर नहीं कर पा रहे हैं.
समूचे भारत में तीन
भाषाएँ पढ़ने व सीखने का चलन पहले से ही है. इसके अनुसार स्कूली बच्चों को एक
क्षेत्रीय भाषा के साथ अंग्रेजी तथा हिन्दी का ज्ञान दिया जाता है. एक अंग्रेजी
अखबार में छपे सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय बच्चे संस्कृत के स्थान पर विदेशी भाषा
पढ़ने को ही अहमियत देते हैं. अखबार का कहना है कि ये बच्चों को एक अच्छे रोज़गार की
ओर भी अग्रसर करता है. हम इसे विडम्बना ही कहेंगे कि हमारी सोच कितनी छोटी है?
जर्मन या फ्रेंच भाषा सीख कर कितने लोग रोज़गार पा सकते हैं? मुश्किल से कुछ सौ या
हज़ार व्यक्ति ही इन भाषाओं को सीख कर नौकरी पा सकते हैं. अगर देखा जाए तो हिन्दी
सीखे हुए लाखों और करोड़ों लोगों को आज नौकरी के कहीं बेहतर अवसर मिल रहे हैं.
इन अंग्रेजियत तथा विदेशी
भाषाओं के समर्थकों से कोई आज ये तो पूछे कि जर्मनी व फ्रांस के कितने लोग हिन्दी
सीखना चाहते हैं? शायद कोई भी नहीं. कारण स्पष्ट है, इन्हें अपनी जबान से बढ़ कर
कुछ भी अच्छा नहीं लगता. फ्रांस में तो आप अंग्रेजी में बात नहीं कर सकते. वहाँ
सभी साइन-बोर्ड उनकी अपनी फ्रेंच भाषा में ही पढ़ने को मिलते हैं. हमारे देश के
लोगों को अंग्रेज़ न जाने कौन सी घुट्टी पिला गए हैं, जो ये अब भी अंग्रेजी की
भक्ति और महिमा-मंडन में लगे हुए हैं!
तीसरी भाषा संस्कृत ही सही, कम से कम आप अपने बच्चों को भारतीय भाषा ही तो सिखा रहे
हैं! इसमें बुरा क्या है? फ्रेंच या जर्मन सिखाने से तो अच्छा है आप अपने ही देश
की किसी भाषा को तीसरी भाषा का स्थान दें! क्या हमारे देश में भाषाओं की कमी है?
विदेशी भाषा तो आप स्नातक
अथवा स्नातकोत्तर करने के बाद भी सीख सकते हैं. हम विदेशी भाषा सीखने पर प्रतिबन्ध
लगाने की बात नहीं कर रहे हैं. मेरे विचार में स्वदेश रहते हुए किसी विदेशी भाषा को
तीसरी भाषा का सम्मान देना निंदनीय है.
कोई भी व्यक्ति अगर चाहे तो संस्कृत
भाषा में अपना केरियर बना सकता है. आजकल देश में संस्कृत पढाने वाले अध्यापकों की
काफी माँग है. हमारे प्राचीन धर्म-ग्रन्थ संस्कृत में हैं, जिनकी टीका करके लोग आज अपना नाम कमा रहे हैं. जर्मनी में तो वेदों के संस्कृत
ज्ञान पर लगातार अनुसंधान होता रहा है. प्राचीन आयुर्वेद के हज़ारों नुस्खे संस्कृत
में लिखे हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति संस्कृत ज्ञान
के बिना नहीं समझ सकता. आधुनिक भाषाओं का अपना महत्व है, परन्तु संस्कृत जैसी प्राचीन एवं समृद्ध भाषा को कमतर बता कर नहीं आंका जा
सकता. हरियाणा के सभी स्कूलों में यह भाषा नियमित रूप से पढ़ाई जा रही है.
विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अलग विभाग होता है. विदेशों के विश्वविद्यालयों
में तो संस्कृत की एक अलग से पीठ भी स्थापित की गई है.
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