हमारे टी.वी. मीडिया की धाक देश में ही नहीं बल्कि
विदेशों में भी खूब है. ये लोग किसी भी अधूरी खबर को सनसनीखेज तरीके से दिखाने में
माहिर हैं. पिछली सरकार ने इन्हें करोड़ों रूपए के विज्ञापन देकर इतना उपकृत कर
दिया था कि अब इन्हें उस सरकार की नाकामी का ज़िक्र करना भी सहज नहीं लगता. क्या
हमारा मीडिया वास्तव में इतना गैर जिम्मेदार है? अगर आप कुछ तथ्यों पर निगाह डालें
तो यह स्वयं ही स्पष्ट हो जाएगा.
1. जब मौजूदा सरकार ने सत्ता
संभाली तो इन्हें महँगाई विरासत में मिली. यह सही है कि प्याज महंगे हुए परन्तु यह
भी सच है कि पिछली सरकार के समय में जिस दाम पर प्याज बेचे गए, अभी उससे आधे दाम
पर ही बेचे जा रहे हैं.
2. सरकार को सत्ता संभाले
अभी दो महीने भी नहीं हुए कि इसे नकारा और निकम्मा साबित करने के लिए कई चैनलों
में होड़ लगी है.
3. इराक से सैंकडों भारतीयों
को छुडवा कर स्वदेश लाया गया है परन्तु टी.वी. मीडिया ने इसे कोई तरजीह नहीं दी.
ज्ञातव्य है कि भारतीय नर्सों के वहाँ फंसे होने की खबर दिन-रात प्रसारित होती रही
थी.
4. सरकार ने कटड़ा तक जो रेल
चलाई है उसे ‘कटरा’ लिख कर प्रचारित कर रहे हैं जबकि सरकार द्वारा स्थापित रेलवे
स्टेशन पर भी ‘कटड़ा’ शब्द ही अंकित है. क्या यह भाषाई प्रदूषण हमारे टी.वी. मीडिया
की देन नहीं है?
5. सरकार के एक मंत्री ने
‘पब’ कल्चर को बढ़ावा न देने की बात क्या कह दी, सभी टी.वी. चैनल इसे व्यक्तिगत
स्वतन्त्रता का उल्लंघन मान कर चिल्लाने लगे. कुछ लोग ‘पब’ में जाकर शराब पीने में अपनी शान समझते हैं. यह चलन
पश्चिमी देशों से आया है जिसे भारत में अधिकतर लोग बुरा मानते हैं. परन्तु टी.वी.
मीडिया द्वारा इस खबर को सत्ता और विपक्ष के बीच एक संघर्ष के रूप में प्रस्तुत
किया गया है.
6. उपर्युक्त घटना पर मीडिया
द्वारा ‘डीबेट’ अर्थात परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें समाज सेवी, महिलाओं के
हितों से जुड़े लोगों और राजनेताओं ने भाग लिया. क्या मीडिया केवल खबर ही पेश करता
है या उसे अच्छा या बुरा बताने से भी बचता है?
7. ज्ञातव्य है कि हमारे देश
में शराब पीने से लाखों लोगों का स्वास्थ्य खराब होता है तथा इसे पी कर जो क़ानून व
व्यवस्था की बदतर स्थिति बनती है, उसमें असंख्य अपराध होते हैं.
8. जहां आम नागरिक को
सुरक्षित माहौल मयस्सर न हो वहाँ आप ‘पबों’ में क़ानून और व्यवस्था बनाने के लिए
कैसे अतिरिक्त बल तैनात कर सकते हैं? युवा लड़के व लड़कियों द्वारा ‘पब’ में शराब
पीने से अनावश्यक अपराधी प्रवृत्तियाँ हावी होने लगती हैं जिसे समाज के शांतिप्रिय
लोग पसंद नहीं करते.
9. क्या शराब बंदी किसी
राजनैतिक दल की ‘कल्चर’ है? कम से कम हमें तो ऐसा नहीं लगता. महिला हितों की रक्षा
करने वाली आयोग की अध्यक्षा यह कहते हुए सुनी गई कि भारत में पश्चिमी सभ्यता बरसों
से आ रही है अतः इस पर अंकुश लगाना ठीक नहीं है. वह परोक्ष रूप से महिलाओं के ‘पब’
में जा कर शराब पीने के अधिकार की वकालत करती हुई नज़र आई.
10. दिल्ली के एक स्कूल की
प्रिंसिपल को भी आमंत्रित किया गया था, जो पब में शराब पीने को बुरा नहीं मानती.
क्या ये प्रिंसिपल महोदय अपने घर में भी अपने सदस्यों को शराब परोसने के हक में
हैं? अगर नहीं, तो क्यों? जो कृत्य घर में बुरा है वह ‘पब’ में क्यों नहीं?
11. कांग्रेस के एक नेता ने
तो यहाँ तक कह दिया कि शराब पीना उनकी पारिवारिक परम्परा है, इस पर कोई रोक नहीं
लगा सकता. क्या गुजरात राज्य में लागू शराब बंदी गैर कानूनी है? अगर नहीं, तो इसे
अन्य राज्य लागू क्यों नहीं कर सकते? क्या किसी को शराब पीने की इजाजत केवल इस लिए
दे दी जाए कि यह उनकी खानदानी परम्परा है?
12. अधिकतर चैनल घुमा-फिरा कर
‘पब’ में शराब परोसने को बढ़ावा देते हुए नज़र आए. कुछ ने तो यह भी कहा कि इस
बयानबाजी की आड़ में संघ परिवार अपना अजेंडा आगे बढ़ा रहा है. तो क्या ये कोई
राजनैतिक आंदोलन है?
13. क्या हमारे टी.वी. मीडिया
की अपने समाज के प्रति कोई जवाबदेही नहीं बनती? क्या ये अपराध करते हुए लोगों की
फोटो ही दिखा कर अपने कर्तव्य की इति-श्री कर लेते हैं?
14. हमारा टी.वी. मीडिया देश
की ज्वलंत समस्याओं के प्रति गंभीर नहीं है. वह ओछी मानसिकता वाली ख़बरें और
परिचर्चा दिखा कर अपनी टी.आर.पी. रेटिंग बढ़ाने में विश्वास करता है. देश के हित की
इसे कोई खबर नहीं है.
15. कोई खबर हाथ लगने की देर
है, बस डौंडी बजानी शुरू हो जाती है. सुबह से शाम तक एक ही सुर में सब चैनल अपना
एक ही राग अलापने लगते हैं. आजकल ‘टमाटर’ को ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बना लिया है.
क्या टमाटर के बिना जीवन समाप्त हो जाएगा? शायद, हमारा टी.वी. मीडिया तो यही सोचता
है!
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